फिर छलक उठा श्रुति लखेड़ा के ” दिल का दर्द “| कह डाली ये बड़ी बात| Click कर पढ़िये पूरी खबर

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस


नारी सशक्तिकरण की बेमिसाल मिसाल और लालढांग की बेटी श्रुति लखेड़ा के दिल का दर्द एक बार फिर छलक उठा। उन्होंने खुलकर अपने मन की बात कही कि उनकी बात को समर्थन भी हुआ और एकजुट होने का संकल्प भी लिया। शब्दों व भावों के बेहतरीन संगम को साधते हुये श्रुति ने वही बात कही जिसका जिक्र खूब हो रहा है।

हिमालयी सरोकारों को समर्पित रैबार संस्था की प्रमुख श्रुति लखेड़ा ने आखिर अपने मन की बात कह ही डाली। उनकी यह मन की बात हर किसी के दिल में जगह बना गयी। सधे हुये अंदाज में उन्होंने वही बात कही जिसका जिक्र तो खूब होता है लेकिन फिक्र किसी को नहीं है। लेकिन श्रुति लखेड़ा के अंदाज में जिक्र भी था तो फिक्र भी साफ झलक रही थी। उन्होंने यह भी कहा कि गर्व से कहो कि हम पहाड़ी हैं। दरअसल, श्रुति ने कई उदाहरण देते हुये कहा कि पहाड़ के लोग स्वयं को पहाड़े कहने में परहेज कर रहे हैं और यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि वे पहाड़ी नहीं हैं।


हरिद्वार में दैनिक भास्कर मीडिया हाउस की ओर से आयोजित शहीद सम्मान समारोह व कवि सम्मेलन में श्रुति लखेड़ा ने कह बात कही। अन्य राज्यों का उदाहरण देते हुये उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों के लोग स्वयं को वहां का मूल बताते हुये गौरव महसूस करते हैं लेकिन अपने उत्तराखंड में ठीक इसका उल्टा हो रहा है। इस मौके पर श्रुति लखेड़ा को सम्मान सम्मानित भी किया गया।

रैबार समिति की अध्यक्ष श्रुति लखेरा ने अपने वक्तव्य में कहा के आज पहाड़ और प्लेन उत्तराखंड के सभी क्षेत्रों के मूल निवासियों को पहाड़ प्लेन की लड़ाई का हिस्सा बनाया जा रहा है । अपितु उत्तराखंड की प्लेन के और पहाड़ी लोग सभी ठगा सा महसूस कर रहे हैं प्लेन के किसान गन्ने और धान की उपज और विपणन से परेशान हैं और पहाड़ के किसान जंगली जानवरों और बाज़ार की उपलब्धता से परेशान हैं । सबसे ज़्यादा आज जो पहाड़ों और प्लेन में बाहरी लोगों की दबंगई और उत्तराखंड को लूटने की होड़ से उत्तराखंड के सभी क्षेत्र बर्बाद हो रहे हैं

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श्रुति लखेडा ने कहा कि अपने मूल से कटना उचित नहीं है। लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिये एकजुट होने की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में आज भी पहाड़ जैसी समस्यायें खड़ी हैं। आधुनिकता की दौड़ में अपने लोक जीवन को भूल की कोशिश खतरनाक है। हमें तो अपनी लोक संस्कृति व लोक जीवन पर गर्व होना चाहिये। कहा कि गर्व से कहो कि हम पहाड़ी हैैं।

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