बड़े काम की है “बैकुंठ औषधि” | जानिये इस बैकुंठ औषधि के बारे में| जयमल चंद्रा की रिपोर्ट

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस


अपने उत्तराखंड में ऐसी औषधियां जो स्वास्थ्य के लिये बेहद ही उपयोगी हैं। पारंपरिक वैद्य इन पर सुंदर काम भी कर रहे हैं। आज विश्व पटल पर आयुर्वेद की महत्ता समझी जाने लगी है और यही वजह है कि सात समंदर पार से भी लोग आयुर्वेद का ज्ञान लेने यहां आ रहे हैं। उत्तराखंड बेशकीमती वनस्पतियों पर काम कर रहे हैं जनपद पौड़ी के चैलूसैंण के सुनील दत्त कोठारी। ये औषधियां पर काम कर कर विश्व पटल पर प्रचारित-प्रसारित करने की मुहिम चला रहे हैं। ये जिन जड़ी-बूटियों पर काम कर रहे हैं उसे बैकुंठ औषधि का नाम दिया गया है।
सिटी लाइव टुडे मीडिया हाउस में जानते हैं सुनील दत्त कोठारी की बैकुंठ औषधि के बारे में। पेश है यह खास रिपोर्ट।

वर्ष 2016 से वंश परंपरागत वैद्य विधा का आधार लेकर हर्बल चाय (मुख्य रूप से जड़, तना, पत्तियां, फूल, फल एवं बीज से युक्त) 48 किस्म की विश्वविख्यात हर्बल चाय प्रस्तुत करने का श्रेय मेरे द्वारा संपादित कार्य को जाता है! इस कार्य के द्वारा हिमालय उत्तराखंड में पाए जाने वाली 4500 जड़ी बूटी खासकर उनका अनुसंधान एवं खोज ,जो वनस्पति स्वयं उपजीत एवं समय अनुसार स्वयं नष्ट होने वाली होती है, यह सभी वनस्पतियां मनुष्य के शरीर प्रकोप (दोष रहित) कार्य करती हैं, मेरे द्वारा बनाए जाने वाले पेय पदार्थ एवं सभी प्रकार के अनुष्ठान आपके शरीर के दोष संचय को शरीर से मल, मूत्र ,पसीना, लार, नाक के छिद्र से, तथा आंखों की नमी के रूप में शरीर से निकाल कर निरोगी काया बनाने में सहायक एवं महत्वपूर्ण है।

शरीर में प्रकोप के मुख्य कारण सर्वप्रथम ऋतु परिवर्तन जिसका सीधा सीधा संबंध अधिक सर्दी व अधिक गर्मी से समझा जा सकता है। शरीर के कोशिकाओं पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव की गणना एवं विश्लेषणात्मक शोध पर कार्य करना, द्वितीय कारण आंतों में देर तक रुकने वाले भोज्य पदार्थ किन भोज्य पदार्थों का गहन अध्ययन द्विपाचे खुराक से किया जाता है, अन्य तृतीय चरण की बात की जाए तो उनमें मन प्रवृत्ति का आधारित क्रोध, भय, तीव्र मानसिक आवेग एवम मन पर कोई आघात की गणना की जाती है।

एक वंश परंपरागत वैद्य की भूमिका में कार्य करने के लिए शोध आत्मक कार्य से विश्व पटल पर छवि बनी हुई है, हर्बल चाय के द्वारा रोग निदान ही मेरा पैतृक व्यवसाय तथा आज मैं आधुनिकरण विभिन्न मंचों व उपचार के द्वारा सिद्ध करता रहता हूं।

प्रकोप की क्रिया अमाशय में होती है, जो मुख्यतः अतिसार पैदा करके शांत हो जाता है, अगर बात करें तो कब्ज की दशा में कमजोर आते शरीर में उत्पन्न मल को शरीर से बाहर फेंकने में सक्षम न हो जाए तो इसका प्रकोप दोष संचित भागों में जारी रहता है। इस कथन को व्यवहारिक समझने के लिए एक सिरके से भरी बोतल लेते हैं, अब आप इसको धूप में रख दें तो इसमें खमीर पैदा होने लगता है। इसके तली में कोई सुराग ना होने के कारण, उफान वाली सामग्री बोतल की मुंह की और जाएगी।

इस प्रयोग के द्वारा हम कह सकते हैं कि हमारे अंदर प्रकोप होने पर शरीर के ऊपरी हिस्सों में उसका असर मालूम होता है। सबसे पहले भारी मालूम होने लगता है, शरीर में प्रकोप से गर्मी पैदा होती है, जिसका परिणाम हमारे खून का तापमान बढ़ा मालूम होता है, इसी को सामान्य भाषा में बुखार कहते हैं। बुखार प्राय शरीर में दोष संचय की दशा में आ जाता है, तथा वह भी उस स्थिति में जब शरीर के स्वाभाविक रास्ते बंद हो जाएं, उपरोक्त तथ्य के आधार पर हम कह सकते हैं, जब प्राय आंतों से नियमित रूप से मल ना निकाल पाती हो -पाखाना नियमित ना होता हो तथा साथ ही साथ पसीना ना निकलता हो एवं शरीर के रोमकूप ना खुले खुले हो, और पेशाब की मात्रा भी कम हो जाती है। इन सब का प्रभाव श्वास की गति को कम करके शरीर को कमजोरी की अवस्था में पहुंचा देती है।

मेरी हर्बल टी विशेषज्ञ की भूमिका में, मेरे द्वारा उत्पादित चाय प्रकोप को दूर करती है ,उदाहरण के लिए बिच्छू बूटी चाय मूत्र के द्वारा, अक्लवीर की चाय पाखाने के द्वारा, तथा चीड़ के पत्तों की चाय पसीने के द्वारा आदि। मेरे द्वारा उत्पादित हर्बल चाय सिर्फ पत्तियों का आधार नहीं होती, सामान्यतः सभी पत्तियां वाजिब दाम पर विभिन्न माध्यम वह मिलते जुलते नाम से उपलब्ध हो जाती हैं, परंतु व अत्यंत प्रभावशाली नहीं होती हैं। मेरे द्वारा उन पर वैद्य विद्या के द्वारा ड्राई प्रोसेस में गुणों को रोकता हूं, ट्रीटमेंट द्वारा उनके गुणों को बढ़ाया जाता है, तथा मिकिं्सग मैथोलॉजी द्वारा वात कफ पित्त प्रकृति के लिए सभी पर लाभकारी हो।

आज के आधुनिक समय में सामान्य मनुष्य खुशबू वाली चाय को ही हर्बल चाय की संज्ञा दे देता है, इस प्रकार की चाय मिलावटी व अन्य सुगंधित पदार्थों का मेलजोल ही होता है, यानी आप को समझना चाहिए कि डिओडरेंट या बॉडी स्प्रे लगाने से शरीर में ताजगी नहीं आती, अपितु शारीरिक स्नान एवं शुद्धि के द्वारा ही शरीर स्पूर्ति मान हो पता है।

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मेरे द्वारा उत्पादित 48 किस्म की चाय सभी प्रकोप हुए दोष रहित शरीर को करती है, यह सभी शोध उत्तराखंड की वंश परंपरागत वैद्य विधि द्वारा का आधार लेकर मानव सेवा के जज्बे की भूमिका का निर्वाह करता है, तथा साथी साथ गुरु ज्ञान के द्वारा उपार्जित ज्ञान को आधार लेकर शिवयोग हीलिंग मां ललितात्रिपुरसुंदरी की साधना मेरे कार्य को आध्यात्मिक बल प्रदान करती है। इसलिए मैं जिन सभी जड़ी बूटियों पर काम करता हूं, उनको “बैकुंठ औषधि“ के रूप में प्रचार प्रसार एवं विश्व भर में मुहिम चलाता रहता हूं।

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