इश्क की आग से हुयी लेखन की बरसात | राजाराम जुयाल की बात | पढ़िये पूरी खबर
सिटी लाइव टुडे, प्रस्तुति-जयमल चंद्रा
बात-1993 की है। जब एक उपन्यास खासा चर्चित हुआ था नाम था इश्क की आग। इश्क की आग ने लेखक के अंदर ऐसी आग लगा दी कि लेखन का सिलसिला फिर थमा ही नहीं। हिंदी भी तो गढ़वाली भी। दोनों में खूब लिखा और अभी भी लिख रहे हैं। जिक्र हो रहा है द्वारीखाल क्षेत्र के जुयाल गांव निवासी राजाराम जुयाल का।
1993 में महज 21 साल की उम्र में अपनी पहली उपन्यास ‘‘इश्क की आग‘‘से उनका लेखन कार्य आरम्भ हुआ। जो उस समय काफी चर्चा में रही। यही से राजाराम जुयाल को नई पहचान मिली। राजाराम ने गढ़वाली में भी खूब कलम चलायी।
फिल्म पापी पराण की पटकथा व संवाद आदि राजाराम ने लिखे। इस फिल्म के गीतांे को गायक राकेश टम्टा ने भी अपनी आवाज दी थी। खास बात यह है कि राकेश टम्टा भी द्वारीखाल के बमोली गांव के ही हैं। राकेश ने हाल में ही प्रसिद्ध सिद्धपीठ नागगढ़ी पर भजन भी लिखा और गाया था यह भजन भी खासा लोकप्रिय हुआ।
इसके बाद ‘‘ख्यालीराम की आत्मा‘‘,‘‘ब्योला हरची ग्ये‘‘,‘‘देबू बण देवदास‘‘ आदि गढ़वाली फिल्मों में राजाराम दमदार लेखन देखने को मिला। राजाराम जुयाल का लेखन आज भी जारी है। वे कहते हैं कि तुमरी रीति आख्यो मा अनवार अपनि खुजयानु रेग्यो मि। अर ख्याली ख्याली मा, सुपन्या सजान्दू रेग्यो मी। छांछ सी छुल्ले ग्यो नॉणी सी गोलिग्यो, छम्म धोली आग मा पाणी चुप सी सल्ले ग्यो।