Garhwal News..पौड़ी जनपद के इस गांव में सालों बाद लगी ” गोट “| जयमल चंद्रा की Report
सिटी लाइव टुडे, जयमल चंद्रा, जयमल चंद्रा, द्वारीखाल
बेशक आज उन्नत खेती के लिये वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग हो रहा हो और यह अच्छी बात है।लेकिन पहाड़ के लोक-जीवन में उन्नत खेती के पारंपरिक तरीके एकदम अलग ही हुआ करते थे। सोने पर सुहागा यह कि उन्नत खेती के साथ सफाई का फार्मूला भी इसमेें समाहित था। साथ में बातों का तड़का अलग से भी। लेकिन अब आधुनिकता की चकाचौंध और पलायन के चलते ये पारंपरिक तौर-तरीके भी पलायन कर गायब होने लगेहैं। गढ़वाल में उन्नत खेती के इस पारंपरिक तरीके को गोट के नाम से जाना जाता है, लेकिन ये अब बीते जमाने की बात होने गयी है।
द्वारीखाल ब्लॉक के बमोली गांव मे तीन दशक के बाद गोट (ग्वाट) के दर्शन हो रहें हैं।प्रगतिशील किसान पपेंद्र सिंह रावत ने वीर सिंह रावत के साथ मिलकर गोट लगा रहें हैं। संवाददाता जयमल चंद्रा ने उनकी गोट मे जाकर जानकारी जुटाई। पपेंद्र सिंह ने बताया कि गोट को कहीं जगह ग्वाट भी कहा जाता है। दशकों पहले करीब-करीब पहाड़ के हर गांव में गोट या ग्वाट लगायी जाती थी। दरअसल, बरसात के मौसम में यह तरीका प्रयोग में आता था। बरसात के तीन-चार महीनों में पशुओं को गांव से अलग कर खाली खेतों में रखने को ही गोट या ग्वाट कहा जाता है। बरसाती मौसम मे खाली खेतों में घास-फूस से झोपड़ियां नुमा आशियाने बनाये जाते थे।
कहीं जगहों टीन के छप्पर भी लगाये जाते थे। बरसात में इन्हीं में पशुओं को रखा जाता था। दिनभर पशु जंगल में चुगाये जाते है और रात में इन झोपड़ी नुमा आशियानो में पशु रखे जाते थे। बारिश न हो तो खुले आसमान के नीचे भी पशु रखे जाते थे। इसके अलावा गांव के लोग भी इन्हीं झोपड़ी नुमा आशियानों मे रहते थे। इससे फायदा यह होता है कि खेतों को प्रचुर मात्रा में गोबर-गौमूत्र मिल जाता है जिससे उन्नत खेती होती है। खास बात यह है कि गोट लगने से गांव में सफाई व्यवस्था भी बनी रहती थी।
दरअसल, बरसात में बारिश होने से जगह-जगह कीचड़ हो जाता था और पशुओं की आवाजाही से गंदगी और भी फैल जाती थी लेकिन गोट लगने से इससे निजात मिल जाती थी। गोट मंे देर रात में बातों का सिलसिला भी चलता था।
वीर सिंह ने बताया कि रात को पशुओं के साथ रहने वालों को गुट्याल कहते है। वहीं उनकी भोजन व्यवस्था भी होती है।अधिकतर गुट्याल दाल -डुंगल बनाते हैं और चाव से खाते हैं। बमोली के ग्रामीण हरेंद्र सिंह,राजेंद्र सिंह,देवेंद्र सिंह,मनोज सिंह,सोबन सिंह भी पपेंद्र सिंह की गोट मे उनका सहयोग करते हैं।