बेटी-ब्यारी पहाड़ैकि | फुरसत के पलों में भी मेहनत करती ‘ घसियारी दीदी ‘ | द्वारीखाल से जयमल चंद्रा की रिपोर्ट

Share this news

सिटी लाइव टुडे, जयमल चंद्रा, द्वारीखाल


नारी की म
हिमा व गरिमा एकदम अलग और अद्भुत है। बात पहाड़ की नारी की करें तो क्या कहने। सौम्यता जितनी उतनी ही मेहनतकश। फुरसत के पलों में भी हाडतोड़ करती हैं पहाड़ की नारी और कहलाती हैं घसियारी दीदी। इन दिनों घसियारी दीदी जंगलों में घास काटने में व्यस्त हैं। दिलचस्प यह है कि घसियारी दीदी समूह के रूप मंे जंगलों में जाती हैं और साथ में लोक गीतों की तान भी झंकृत करती हैं।
गढ़रत्न लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी का एक गीत पहाड़ की नारी की महिमा व गरिमा को चरितार्थ करता है। गीत के बोल हैं प्रीत की कुंगली डोर सी छन यू, पर्वत जन कठोर भी छन यू, बेटी-ब्यारी पहाड़ैकी । पहाड़ की नारी सालभर मेहनत करती है। घर से लेकर जंगल और खेतीबाड़ी तक। चूल्हा-चैका से लेकर तमाम जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करती पहाड़ की नारी हर चुनौती का पहाड़ बनकर सामना करती हैं।


इस वक्त अक्टूबर माह चल रहा है। यह वह समय होता है जब पहाड़ में खेतीबाडी का काम लगभग नहीं के बराबर होता है। खेतीबाड़ी का काम पूरा हो चुका होता है और गोदाम अनाज से भर जाते हैं।
लेकिन, ये बेटी-ब्यारी तो पहाड़ की है साहब। चुप कहां बैठने वाली है। बेटी-ब्यारी इन दिनों पूरी तरह से घसियारी दीदी बन जाती है। इन दिनों जंगलों में घास काटती घसियारी खूब देखी जा सकती है।

ad12


समूह बनाकर बेटी-ब्यारी घास काट रही हैं तो लोक गीतों की धुनंे भी झंकृत हो रही हैं। लोक गायक राकेश टम्टा बताते हैं कि वैसे तो पहाड़ की बेटी-ब्यारी बारह-मास घास काटती हैं लेकिन इन दिनों केवल घास काटने पर ही फोकस रहता है। पौड़ी जनपद के कब्जीखाल ब्लाक के डुंक गांव निवासी सुनील रौथाण व अमरदीप सिंह रौथाण बताते हैं कि घसियारी दीदी घास काट रही हैं और गीतों की तान भी साथ में झंकृत कर रही हैं। कहने का मतलब यह है कि पहाड़ की बेटी-ब्वारी की सदा जय हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *