महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल की जयंती| व्यक्तित्व व कृतत्व का स्मरण और छलका उठा काव्य कलश| साभार-आशीष सुंदरियाल
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस
गढ़वाली भाषा के सुप्रसिद्ध कवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी 90वीं जयन्ती के अवसर पर चिट्ठी-पत्री, मेरू मुलुक और दिशा-ध्याणी संस्था के द्वारा बालावाला, देहरादून में काव्यांजलि कार्यक्रम व गढ़वाली कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में प्रथम चरण में महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी के कृतित्व व व्यक्ति पर चर्चा करते हुये उनके गढ़वाली साहित्य में दिये गये अवदान पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे। द्वितीय चरण में उत्तराखण्ड के लब्ध-प्रतिष्ठित रचनाकारों के द्वारा अपनी कविताओं की प्रस्तुति दी गई।
कवि कन्हैयालाल डंडरियाल के जन्मदिन पर आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत कार्यक्रम अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह नेगी एवं मुख्य अतिथि पदम् श्री से अलंकृत व ‘मैती’ आन्दोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने दीप प्रज्ज्वलित कर की। इसके उपरांत गढ़वाली के वरिष्ठ कवि देवेन्द्र प्रसाद जोशी ने डंडरियाल जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस मौके पर उन्होंने कन्हैयालाल डंडरियाल जी पर लिखी अपनी एक रचना भी सुनाई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पदमश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि अपने पुराने कवियों का इस तरह से स्मरण करना एक सराहनीय कार्य है।
इस तरह के कार्यक्रम से अपने साहित्य व संस्कृति के संरक्षण में मद्द मिलेगी। उन्होंने कहा कि हमने राज्य प्राप्ति के बाद विकास जरूर किया है परन्तु अभी भी जिस सपने के साथ राज्य बना था उसकी दिशा में काफी कार्य किये जाने की आवश्यकता है। तथा साहित्यकारों का यह दायित्व है कि वे समाज को इसके प्रति सचेत करने का काम करते रहें। उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री सुमन गौड़ ने भी इस अवसर पर डंडरियाल जी की कविता- ‘नैली-पाली की सार्यूं मा…. ‘ का वाचन किया। इसी क्रम में अनिल सिंह नेगी ने भी डंडरियाल जी की अंज्वाळ कविता संग्रह मे छपी रचना ‘फुलमुंङ्या बुढ़ड़ि’ का पाठ किया।
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुये अनिरुद्ध सुन्दरियाल ने कन्हैयालाल डंडरियाल जी के गीत ‘ धमा धम गंज्याळि नचदि… ‘ की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के आयोजक कवीन्द्र इष्टवाल ने कहा कि मुझे ये जानकर बहुत अच्छा लगता है कि डंडरियाल जी जैसे महान कवि उनके पास के ही गाँव ‘नैली’ में जन्में हैं।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में डंडरियाल के पुण्य स्मरण के उपरांत द्वितीय चरण में एक भव्य कवि सम्मेलन की शुरुआत हुई। कवि सम्मेलन की शुरुआत आज की पीढ़ी के सशक्त गीतकार गिरीश सुन्दरियाल ने मूल निवास’ के मुद्दे पर लिखे गीत ‘फिर हम रैबासी कखा… ‘ से की। इसके बाद युवा गीतकार अखिलेश अंथवाल ने अपने गीत ‘ज्यू अगास उडणौ मेरु कनु … ‘ को प्रस्तुत किया। कवि सम्मेलन को आगे बढ़ाते हुए
युवा कवि आशीष सुन्दरियाल ने अपनी रचना में व्यवस्था पर ब्यंग करते हुए ‘ कब होलि बात’ व ‘अज्यूं बि छैं छन गौं’ कविता का पाठ किया। इसके बाद गढरत्न नरेन्द्र सिंह नेगी ने कन्हैयालाल डंडरियाल जी के गीत ‘ दादू मेरी उळ्यरू जिकुड़ि’ गाकर डंडरियाल जी को श्रृद्धांजलि दी। फिर नेगी जी ने डराते हुए बुढ़ापे के मनोविज्ञान को इंगित करते हुये ‘लंगत्यांद तंगत्यांद खंसदा खंसदा वे बुढापा तै मिन् दूर बटि हि देखियाल छौ’ कविता को सुनाया। इसके बाद श्रोताओं के अनुरोध पर नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने ‘स्वी न सई न खबर कैई स्वीणा मा ऐई सुरक सुरक… ‘ गीत गाया।
कविताओं के पाठ के मध्य में बालावाला, देहरादून मे हाल ही में आयोजित रामलीला के पात्रों को पुरुस्कार स्वरूप नरेन्द्र सिंह नेगी जी के कर कमलों से चिट्ठी-पत्री पत्रिका भी भेंट की गई।
पुुरूस्कार वितरण के उपरांत रुद्रप्रयाग से आये कवि और कलश संस्था के मुख्य संयोजक ओम प्रकाश सेमवाल ने हिमालय को बचाने की चिंता को लेकर ‘हिमालय बचौणै या लम्बि लड़ै च कस कमर अब जीत होली’ गीत सुनाया। इसके बाद गढ़वाली भाषा की प्रतिष्ठित कवियत्री बीना बेंजवाल ने हाल ही उनकी सोशलमीडिया पर खूब सराही गई कविता ‘अंध्यरु’ से अपना कविता पाठ का प्राम्भ किया। उनकी पंक्तियां ‘माना कि ये जमना उज्यलै च खूब हाम/पर बच्यूं रैण चैंद इतगा अंध्यरू/जैमा बाळों तै दिखै संकेद कथौ कि कुणाबूढ… ‘श्रोताओं के द्वारा काफी पसन्द की गई। उन्होंने दिशा ध्याणि को समर्पित अपनी एक अन्य कविता का पाठ भी किया।
लोक की धुनों को साथ लेकर गढ़वाली गीत-संगीत के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान रखने वाले मूर्धन्य गीतकार ओम बधाणी ने अपने सुमधुर स्वर में ‘जख देखी तळ्खि वखि ढळकि/लड़ै लड़ी जनता अर मौज पड़े वूंकी’ गीत के माध्यम से आज की उत्तराखण्ड की दशा का मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने अपना एक अन्य गीत ‘भलु नि लगदु भलु नि लगदु इनो दुमुख्या… ‘गीत भी गाया। दर्शक दीर्घा से फरमाइश आने पर बधाणी जी ने अपना प्रसिद्ध गीत ‘लटुल्यूं का बण श्वेता फुल हैंसण बैठीगीं’ भी सुनाया। फिर कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे युवा कवि धर्मेन्द्र नेगी ने एक विशेष अंदाज में गढ़वाली ग़ज़ल ‘पकयां चखुळों तै बि हवा मा उडै देंदन उडाण वला’ को पढ़कर खूब तालियां बटोरी। उन्होंने अपनी एक और रचना ‘वूं डांडि काठ्यूं तरपां पीठ को फरकाण चांद/अपणु रौंत्याला मुल्क छोड़ि यख को आण चांद’ के माध्यम से पहाड़ से पलायन करने की मजबूरी को दर्शाया।
कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुये फिल्म अभिनेता, रंगकर्मी व गढ़वाली में नई कविता के मजबूत स्तम्भ कवि मदन मोहन डुकलाण ने अपनी बेहतरीन रचनाओं ‘पुरखा’ और ‘बरसु बाद’ का पाठ कर कवि सम्मेलन को अपने शिखर पर पहुचां दिया।
लगभग तीन घण्टे चले इस कार्यक्रम के अन्त में ‘दिशा-ध्याणी’ संस्था के माध्यम से वितरित किये जा रहे पहाड़ के जैविक उत्पादों को ‘समळौण’ के तौर पर अतिथियों व कवियों को आयोजक कवीन्द्र इष्टवाल के द्वारा भेंट किया गया। इस आयोजन में रमाकांत बेंजवाल, कुलानन्द घऩसाला, रमेश बडोला, डॉ अनूप वीरेन्द्र कठैत, बलबीर सिंह राणा, आकृति मुण्डेपी, रक्षा बौड़ाई आदि साहित्यकार एवं पत्रकार गुणानन्द जखमोला, समाज सेवी जयदीप सकलानी, मोहित डिमरी, लोक गायक सौरभ मैठाणी चित्रकार राजेश गुसाईंआदि उपस्थित थे।