ये उन दिनों की बात है जब ऐसी चक्की होती थी, जानिये कैसी| कमल उनियाल की Report
सिटी लाइव टुडे, कमल उनियाल, द्वारीखाल
आज हम पुरानी शैली के पत्थर के नक्काशीदार मकान देवी-देवताओं के शानदार चित्रों वाला दरवाजे चौखट हस्तकला वाले घर देखते हैं तो प्राचीन संस्कृति की याद मन को झकझोर देती है। लेकिन हम नहीं जानते इसमे हमारे पूर्वजों की मेहनत छुपी हुयी थी। उनके द्वारा पारम्परिक धरोहर आपसी प्रेम कठिन परिश्रम में इंसानी ताकत को बयां करती थी।
इसके विपरीत आज हम पुरानी शैली के मकान हो खेती हो खान पान, पहनना, रीत रिवाज हल बैल नदी किनारे आटा पिसने वाला घट भौतिकवाद के जमाने में कोसो पीछे छोड़ गये हैं। जो कि जीवन के लिए एक खतरे की आहट है। आज हम बात कर रहे हमारी पुरानी धरोहर जो अपनी अंतिम कगार पर खड़ा है। जिसे पहाडी भाषा में पनचक्की, घराट या आम भाषा मे घट बोला जाता है। जैसे जैसे ग्रामीण अंचलो मे कृषि का स्तर शून्य हुआ है। तब से घट देखना दुर्लभ हो गया है। विडम्बना ही है पहले हर गाँव मे कोदा गेहूँ पिसने के लिए घट रहते थे अब पूरे जनपद में मात्र तीन घट रह गये हैं।
शायद ही आधुनिक पीढी घट के बारे में जानते होगे। घट तेज बहाव वाले नदी, गधेरे के पानी के स्थान पर एक छोटा सा कमरे मे बनाया जाता है। यह पानी से चलने वाला पनचक्की है। गाड गधेरे या नदी के किनारे छोटा से कमरे के अंदर तेज बहाव वाले गधेरे के पानी को नहर द्वारा लाकर तीस पैंतीस फीट लकडी का पनियाला जिसे बीचो बीच काटकर बनाया जाता है। इसी पनियाला द्वारा नहर से तेज बहाव का पानी की निकासी की जाती है। तेज पानी लकडी से निर्मत पंखे से टकराकर पंखा घूमता है।
इससे पत्थर के बने चक्के पंखे चलने के साथ घूमने लगता है और गेहूँ का आटा पिसता है। पहले आपसी भाई चारा की ऐसी मिसाल थी घट का मालिक एक दूण पीसने पर केवल एक पाथ पिसाई लेता था। ग्रामीण भारत नेगी राम कुँवर हर्षपति ने बताया ने बताया कि हम अपने परम्परागत विरासत को संजोये रखने में कामयाब नहीं हो सके। धीरे धीरे अब पुरानी संस्कृति सभ्यता विरासत धरोहर विलुप्त के कगार पर है जिससे सामाजिक एकता का खंडन हो रहा है।