” ग़ज़लश्री” Ganesh Viran…वीरान सुदी शक नी खांदू, जणदू च पर बस चुप रान्दू|अजय रावत Report

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस-अजय रावत

वीरान ऐसे ही संदेह नहीं करता, जानता सब कुछ है लेकिन चुप रहता है”◆ Ganesh Viran Silmana भैजी , भले आप सब कुछ जानते हुए भी चुप रहें, लेकिन हम तो बोलेंगे ही..

ग़ज़ल लफ्ज़ अरबी ज़बान से निकला है, जिसका मतलब होता था महबूबा के हुस्न और फ़ितरत की तारीफ़.. कौन यकीं कर सकता था कि कभी अरबी, फ़ारसी से बारास्ता उर्दू – हिंदी और उससे आगे गढ़वाली लोकभाषा में ग़ज़ल की नज़्में इज़ाद होंगीं, लेकिन यह कर दिखाया मेरे अपने जिले गढ़वाल की पौड़ी तहसील के विखं कल्जीखाल की असवालस्यूँ पट्टी के तंगोली गांव के गणेश वीरान ने..घमंड की सरहद तक नाज़ है मुझे अपने इलाके के ऐसे शायर पर. जिन्हें गत दिनों “ग़ज़लश्री” अवार्ड से नवाज़ा गया, यकीन जानिए यह पद्मश्री से बढ़कर है अपने कल्जीखाल पौड़ी और गढ़वाल के बाशिंदों के लिए..

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“तौं घघरी का फेरों मां क्वी न क्वी जान फंसी च, ए लौ”.. गुस्ताख़ी माफ़ कीजियेगा वीरान साहब..आपकी इन लाइनों को मैं उत्तराखंड की सियासत से ज़मा कर रहा हूँ, यहां आज तक जितने बज़ीर ए आला तख्तनशीं हुए, कोई भी परबत की ज़रूरतों व हसरतों के मुताबिक हुक़ूमत नहीं चला पाए, क्योंकि उनकी घाघरी में दिल्ली के हाईकमान और कारोबारी कॉर्पोरेट, माफिया जैसी जाने फंसी हुई थी।
बहरहाल फख्र है हमें अपने इलाक़े की शान वीरान पर.. “ग़ज़लश्री” के असल हक़दार हैं आप.. बधाई मुबारक़..

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