पहाड़ की पीड़ा| क्वी सुणद मेरी खेरी, क्वी गणदो मेरु दुख| कमल उनियाल की Report

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सिटी लाइव टुडे, कमल उनियाल, द्वारीखाल


क्वी सुणदा मेरी खेरी, क्वी गणदो मेरु दुख
क्वी होन्दू मेरु अपणू, कभी ओन्दू मेरु मुख मा
झफ मारी अंग्वाल, मेंफर भी सुख दुःख मा
कख होलू इन दगडया, कख मिलल इन गेल्या।

नरेंद्र सिह नेगी द्वारा गाया गया यह गीत अब अकेलापन और वीरान होते गाँवो के बृद्धजनों की पीडा को बयाँ करता है। हर बात में पैसा कमाने की होड हमारी अनेक परम्पराओं और मानवीय रिश्ते नातो को खत्म कर दिया है। उत्तराखंड में राज्य निर्माण के बाद पलायन ज्यादा हुआ है।

पहले के समय गाँव में प्रवेश करते ही बच्चों की किलकारियां गुल्ली डंडा खेलते बच्चे नजर आते थे पर अब यह देखने को नहीं मिलता सिर्फ अब बृद्धजनो की अपनो के इन्तजार में राह ताकती आँखे बेबस और शून्य को निहारती नजर मन को द्रवित कर देती है। कभी बुजर्गो की स्वय की एक विशिष्ट पहचान होती थी अब धीरे धीरे यह पहचान गुमनामी के अंधेरो मे खो गयी है। कभी फूफा, मामा ठुल्ला नानी कलेवा लेकर आते थे सभी परिजनो का खुशी का ठिकाना नही रहता था अब कोई अपना पराया नही दिखाई देते। क्योकि अब नयी पीढी को शहर की विलासी जीवन अपनाने की आदत पड गयी है जिससे नाते रिश्ते भी खत्म होने के कगार पर खडे है।

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बुजुर्ग हीरालाल जगत सिह गोदा देबी बीर सिह का कहना है कि बेटे बहू पलायन कर गये हैं गाँवो मे सिर्फ बृद्ध दम्पति रह गये हैं बीमार होने पर कोई ले जाने वाला भी नही है सिर्फ वे लोग अपनो के इन्तजार में बाट जोहते है। पहाड के गाँवो की स्थिति यह हो गयी है लगभग तीन हजार गाँव जन शून्य हो गये हैं और इतने ही गाँवो में मात्र बृद्ध दम्पति रह रहे है जो कि एक चिंता का बिषय है।

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