जनपद पौड़ी| किसी भी करवट बैठ सकता है ऊंट| मतदाता बने पहेली|अजय रावत, वरिष्ठ पत्रकार
सिटी लाइव टुडे, अजय रावत, वरिष्ठ पत्रकार
आम धारणा है कि नेता चुनाव जीतने के बाद जनता के लिए पहेली बन जाते हैं, लेकिन इस मर्तबा मतदाताओं का व्यवहार रहस्यमयी बना हुआ है। जो पार्टियों व प्रत्याशियों के लिए पहेली बन गया है। 2017 में जिले की सभी छह विधानसभाओं में भाजपा की हवा साफ महसूस की जा रही थी लेकिन इस बार ऊंट किस ओर करबट लेगा, यह कहना तजुर्बेकार समीक्षकों के लिए भी चुनौती बन गया है।
जिले की पौड़ी सुरक्षित सीट पर भाजपा व कांग्रेस अपनी विजय के प्रति आश्वस्त हैं, लेकिन निर्णायक स्तर पर अभी तक कोई पंहुचता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है। श्रीनगर विस् में भले गणेश गोदियाल की विजय को लेकर समीक्षक आशान्वित थे किंतु यहां भी पग पग और पल पल में पलड़ा दोनों तरफ झुकता नज़र आ रहा है, मोहन काला फैक्टर भले ज्यादा वजनी न हो लेकिन यह कांटे के पलड़े के झुकाव को प्रभावित कर सकता है।
चौबट्टाखाल की जंग में अलग ही रंग नज़र आ रहा है। एक तरफ भारी भरकम सतपाल महाराज हैं तो दूसरी ओर संसाधनों से लैस पूर्व जिपं अध्यक्ष केशर सिंह, वहीं आप के दिग्मोहन के प्रचार अभियान को देखते हुए उनका वजन भी इस सीट के परिणामों पर निश्चित रूप से निर्णायक असर डालेगा। यहां तीसरा कोण भले निम्न हो, मध्यम हो या शीर्ष, किन्तु तीसरा कोण अवश्य नज़र आएगा।
लैंसडौन में कांग्रेस के स्थानीय छत्रपों की घोषित नाराजगी के बावजूद जंग कांटे के मुकाबले में आती नज़र आ रही है। प्रचार के बाकी बचे 6 दिन में दोनों में से कौन बेहतर कर सकता है, यही तय करेगा यहां ऊंट किस करबट बैठेगा।
यमकेश्वर में पहली बार कांग्रेस बिना बागी की चुनौती के खुलकर बैटिंग कर रही है, किन्तु कोटद्वार निवासी शैलेन्द्र के सामने स्थानीय रेणु बिष्ट का स्वाभाविक जनाधार भी कमजोर नहीं माना जा सकता। यहां के कई बड़े नेता इस मर्तबा खुलकर शैलेन्द्र के पाले में नज़र आ रहे हैं लेकिन यह चर्चा भी है कि कुछ अच्छे जनाधार वाले खांटी व्यक्तित्व इस बार रेणु बिष्ट की सेना के जंगजू बने हुए हैं जो ताउम्र यहां भाजपा के प्रत्याशियों के बरख़िलाफ़ रहे हैं। ऐसे में इस सीट का ऊंट क्या करवट लेगा, अभी से कहना जल्दबाजी होगा।
रही बात कोटद्वार की तो जहां जब हरक सिंह रणछोड़ बने तो लग रहा था कि सुरेंद्र नेगी के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा अग्रिम रूप से प्रमाणपत्र छपवा देना चाहिए। लेकिन यहां की तस्वीर भी अब धुंधली हो गयी है। सुरेंद्र नेगी के हिस्से में हाथी भी चुग रहा है तो झाड़ू भी लगती नज़र आ रही है। अहम यह है कि यहां सभी प्रत्याशियों के जलसों में नारेबाजी कर रहे तथाकथित समर्थकों के बाबत यह कहना भी मुश्किल होगा कि इनका रुख कहाँ है। बहरहाल यहां भी तीन मजबूत कोण का बनना तय है।