Psychology…ऐसे खत्म होगा Glossophobia (Fear of Public Speaking)|कन्या गुरूकुल में बताये खास Tips
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस-हरिद्वार–Glossophobia (Fear of Public Speaking):
Glossophobia (Fear of Public Speaking): बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि। बोलने एक कला है हुनर है। पब्लिक डाॅमेन पर प्रभावी तरीके से अपनी बात रखकर आप अपनी अलग ही छाप छोड़ सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कैसे। सार्वजनिक मंचों पर कहने में तो कईयों का पसीना निकल जाता है। पर जरा ठहरिये यहां आपको ऐसे टिप्स बता रहे हैं जो आपकी वाकपटुता को ना केवल निखारेगा बल्कि सार्वजनिक मंचों पर कहना का डर यानि चिंता को जड़ से ही खत्म कर देगा। ऐसा ही कुछ हुआ है कन्या गुरूकुल के मनोविज्ञान विभाग में। यहां आयोजित कार्यक्रम बेहद खास रहा। आइये आपको इस कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देते हैं। गुरूकुल कांगड़ी विवि के मनोविज्ञान विभाग के मीडिया प्रभारी डा मनोज कुमार चैाहान ने विस्तार से जानकारी साझा की है। Glossophobia (Fear of Public Speaking):


दरअसल, कन्या गुरूकुल के मनोविज्ञान विभाग में एक बेहद खास और उपयोगी कार्यक्रम हुआ। जिसका सारा फोकस सार्वजनिक मंचों पर बोलते-कहते वक्त डर या चिंता को कैसे खत्म किया जाये पर रहा। इसमें अतिथि व्याख्याता के रूप मे प्रोफसर संगीता मदान, पर्यावरण विज्ञान कन्या गुरूकुल परिसर ने अपना व्याख्यान दिया। व्याख्यान का विषय सार्वजनिक भाषण मे चिन्ता को कम करना और अपनी प्रस्तुति को बेहतर किस प्रकार बनाये था। व्याख्यान में मनोविज्ञान विभाग के लगभग 30 विद्यार्थी उपस्थित थे। प्रो० संगीता मदान ने बताया कि सार्वजनिक रूप से बोलने का डर या चिन्ता को ग्लोसोफोबिया भी कहा जाता है यह एक आम चिन्ता है। इस प्रकार की चिन्ता को कम करने के लिए कई प्रकार के उपाय जैसे, विषय पर अच्छी तरह से तैयारी करना, बार-बार अभ्यास करना दोस्त या परिवार के सदस्यो के सामने अभ्यास करना या शीशे के सामने अभ्यास कर सकते है। चिन्ता की भावना को नियंत्रित करने के लिए गहरी सॉस लेना या कई प्रकार के ध्यान लगा कर चिंता को प्रतिबंधित कर सकते है।
ग्लोसोफोबिया सार्वजनिक रूप से बोलने का डर है, जिसे भाषण चिंता या सार्वजनिक बोलने की चिंता भी कहा जाता है. यह एक विशिष्ट फोबिया है, जो किसी वस्तु या स्थिति के लगातार और अत्यधिक डर की विशेषता है. ग्लोसोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति को मंच पर बोलने से पहले या दौरान घबराहट, पसीने, हाथ-पैर कांपने, आवाज लड़खड़ाने और शुष्क मुँह जैसी शारीरिक प्रतिक्रियाएँ अनुभव हो सकती हैं. परिभाषा:ग्लोसोफोबिया, जिसे भाषण चिंता भी कहा जाता है, सार्वजनिक रूप से बोलने का डर है.
कारण:यह डर कई कारकों के कारण हो सकता है, जैसे कि आनुवांशिकी, सीखा हुआ व्यवहार या पिछले अनुभव.
लक्षण:ग्लोसोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति को कई शारीरिक लक्षण अनुभव हो सकते हैं, जैसे कि घबराहट, पसीने, हाथ-पैर कांपना, आवाज लड़खड़ाना, शुष्क मुँह, और दिल की धड़कन तेज होना.
उपचार:ग्लोसोफोबिया का उपचार कई तरीकों से किया जा सकता है, जैसे कि मनोचिकित्सा, व्यवहार चिकित्सा, और एक्सपोजर थेरेपी.
अकसर हमारी सोच ही इसका करण होती है। तो अपने इस डर को कम करने के लिए अपनी सोच को सकारात्मक रूप से बदलने की कोशिश कर सकते है। जिन दर्शको के सामन आप बोल रहे है। उनके साथ सम्बन्ध बनाने की कोशिश भी सार्थक प्रयास हो सकते है, अपनी आवाज पर नियंत्रण, अगर इन प्रयासो से भी आपकी चिन्ता कम नही हो पा रही तो किसी पेशेवर की सलाह लेना उपयुक्त हो सकता है। व्याख्या का अगला विषय अपनी प्रस्तुति को बेहतर किस प्रकार बनाये था।
इस विषय पर प्रो० मदान ने बताया कि सबसे पहले अपनी सामग्री को सरल और स्पष्ट लिखे। ज्यादा से ज्यादा जानकारी के बजाय महत्वपूर्ण बिंदुओ को स्पष्ट करे । अपनी प्रस्तुति में चित्रों, आर्ट और ग्राफ का उपयोग करें यह समझने को आसान बनाता है। प्रस्तुतीकरण के समय उपयुक्त उदाहरणों का उपयोग करें। विद्यार्थियों ने कई प्रकार के प्रश्न पूछ कर अपनी जिज्ञासा को शान्त किया। कार्यक्रम का सचांलन डा० सुनिता रानी, डा० ऋचा सक्सैना डा० पारूल मलिक ने किया। संचालन में विभाग से दीपा साहू, हरिराम का विशेष सहयोग रहा।