2081 @ स्वामी शिवानंद ने पूछा ” कैसे शुरू हुआ नव संवत्सर । आचार्य श्री “दैवज्ञ ” ने दिया ये जवाब| Click कर पढ़िये पूरी खबर

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस

देहरादून । लोगों के मन में आज नव वर्ष को लेकर तमाम जिज्ञासाएं हैं, जिसको लेकर वह उत्तराखंड ज्योतिष रत्न डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल से सीधे प्रश्न कर रहे हैं, इस संदर्भ में सबसे बड़ी जिज्ञासा जनमानस की तरफ से उत्तराखंड के महान संत रुद्रप्रयाग जनपद में स्थितश्री कोटेश्वर महादेव के पीठाधीश्वर स्वामी शिवानंद जी महाराज ने व्यक्त करते हुए डॉ घिल्डियाल से पूछा है कि कैसे शुरू हुआ हिन्दू नववर्ष यानी नव संवत्सर? पंचांगों में दर्शाया गया है कि इस वर्ष संवत 2081 से शुरू हुआ है, तो इसकी गणना कैसे हुई है?

जनमानस के प्रश्नों पर हमेशा की तरह विस्तृत जवाब देते हुए उत्तराखंड ज्योतिष रत्न एवं संस्कृत शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक आचार्य डॉ चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने कहा है, कि हिन्दू नववर्ष यानी नव संवत्सर की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है। सनातन परंपरा में इस दिन को ही साल का पहला दिन माना जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन को ही साल का पहला दिन मानकर भारतवर्ष में काल गणना की जाती है। इस त्यौहार को भारत के हर राज्य में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। हिन्दी भाषी राज्यों में इसे हिन्दू नववर्ष या नव संवत्सर के नाम से जाना जाता है, तो वहीं महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में उगादि, जम्मू और कश्मीर में नवरेह तथा मणिपुर में साजिबु नोंगमा पंबा के नाम से जाना जाता है।

9 अप्रैल 2024 से शुरू हुआ है इस वर्ष काल नाम का नव संवत्सर।

जनता द्वारा समय-समय पर जिन्हें राजगुरु की उपाधि देने की मांग उठती रही है,ऐसे विद्वान आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं ,कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इस साल हिन्दू नववर्ष की शुरुआत 9 अप्रैल दिन मंगलवार से होगी।
भारत की एक बड़ी जनसंख्या इसी दिन को नया साल मनाती है ,और इसी के अनुसार शुभ कार्यों को करने के लिए हिन्दू तिथियों
और मुहूर्तों का प्रयोग किया जाता है।

चैत्र माह में इसलिए मनाया जाता है नववर्ष ।

सरकारी ऑफिसर बनने से पूर्व देश एवं विदेशों में 700 से अधिक श्रीमद् भागवत कथाओं का व्यास गद्दी से प्रवचन करने वाले आचार्य डॉ चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं, कि पृथ्वी के निर्माण का उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है। जिसमें बताया गया है ,कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही ब्रह्मा भगवान ने इस पृथ्वी की रचना की थी। जिसके बाद से सृष्टि का संचालन प्रारंभ हुआ। इसलिए सनातन धर्मावलंबी इसी दिन हिन्दू नववर्ष मनाते हैं।

नव संवत्सर का इतिहास

सौर विज्ञानी डॉक्टर घिल्डियाल के अनुसार नव संवत्सर मनाने की शुरुआत उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य के कार्यकाल में हुई थी। इसे भारतीय नववर्ष के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य के समय में इसकी शुरुआत होने से इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है।

शक संवत और विक्रम संवत में अंतर

वर्तमान में संस्कृत शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग में सहायक निदेशक आचार्य घिल्डियाल विस्तृत व्याख्या करते हुए बताते हैं ,कि शक संवत को सरकारी तौर पर मान्यता दी जाती है, क्योंकि प्राचीन शिलालेखों में इसका वर्णन मिलता है। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से आमतौर पर 78 वर्ष पीछे चलता है। अर्थात विक्रम संवत से 135 साल पीछे चलता है।

ऐसे हुई विक्रम संवत मनाने की शुरुआत

राजा विक्रमादित्य के दरबार में वराहमिहिर नाम के एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री थे। उन्हें सूर्य, चंद्रमा और तारों तथा उनकी गति के बारे में अच्छा खासा ज्ञान था। उन्हीं ने सबसे पहले साल के सभी दिनों को विक्रम संवत के रूप में मनाने का प्रस्ताव दिया था। विक्रम संवत ग्रेगोरियन कैलेंडर से लगभग 57 वर्ष आगे चलता है। उदाहरण के लिए 2024+57=2081 विक्रम संवत शुरू होने जा रहा है।

हिंदू कैलेंडर के 12 महीनों के नाम
नव संवत्सर से शुरू हुए हिन्दू कैलेंडर में कुल 12 महीने होते हैं, जिनमें चैत्र पहला महीना होता है जबकि फाल्गुन आखिरी महीना होता है।

हिंदू कैलेंडर के 12 माह-

चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।

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,डॉ चंडी प्रसाद घिल्डयाल के सटीक जबाबों से संतुष्ट स्वामी शिवानंद गिरि महाराज ने उत्तराखंड सरकार से उन्हें शीघ्र राजगुरु की विशेष सुविधाएं देने की मांग की है, जिससे वह सनातन धर्म के परिपेक्ष में हिंदू रीति रिवाज के अनुसार समय-समय पर पूरे राज्य की जनता का मार्गदर्शन करते रहें।

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