सीखो रे सीखो…..ढोल के बोल की आवाज और मशकबीन की धुन का हुनर| जगमोहन डांगी की Report
सिटी लाइव टुडे, जगमोहन डांगी, पौड़ी गढ़वाल
यह बात ठीक है कि वर्तमान समय में लोक संस्कृति के रंग बेरंग होते जा रहे हैं। कम से कम युवा पीढ़ी तो लोक जीवन व लोक संस्कृति से दूरी बनाती जा रही है। गौं-गुठृयार में ही ऐसा हो रहा है तो फिर शहरों में क्या हाल है इसका अंदाजा स्वयं ही लगाया जा सकता है। लेकिन, जरा ठहरिये, अभी भी हैं कई ऐसे बिरले जिन्हें लोक संस्कृति की फिक्र है। लोक संस्कृति को बचाने की कोशिश भी हो रही है। ऐसे ही अपने भाई विनोद बछेती। दिल्ली की धरती पर ऐसी मुहिम शुरू की है जो सराहनीय है और निश्चित ही कहा जा सकता है कि लोक संस्कृति के रंगों को और भी गाढ़ा करन में अहम भूमिका निभाने वाली है यह कोशिश।
दरअसल, पारंपरिक वाद्य यंत्रों की सुर, ताल को तेज करने में जुटे हैं विनोद भाई। दिल्ली में वाद्य यंत्रों का प्रशिक्षण देने का कार्य हो रहा है। इसके लिये जानकार प्रशिक्षक भी नियुक्त किये गये हैं। विनोद भाई के इंस्टीट्यूट DPMI दिल्ली अशोक नगर में स्थित है में यह सराहनीय कार्य हो रहा है। खास बात यह है कि प्रशिक्षण निशुल्क दिया जा रहा है। उत्तराखंड़़ी वाद्य यंत्र ढोल ,दमाऊं व मशककबीन के वादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ऐसा कार्य निश्चित ही लोक संस्कृति के आकार को विस्तार देगा।