मां ने डेढ़ बीघा जमीन देकर कहा बेटे इस पर मकान मत बनाना| जानिये क्यों|देखिये वीडियो

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस


प्रकृति प्रेम की मिसाल पेश करती यह रिपोर्ट बेहद खास है। दिल को छू लेने वाली है और सार्थक संदेश भी। मां की ममता भी और वनों को बचाने की मुहिम की बुलंद आवाज भी। मकान बनाने के लिये पेड़ को काटना पड़ा तो बेटा फूट- फूट कर रो पड़ा तो मां की आंखें नम हो गयी। मां बने बेटे के सिर पर हाथ रखा और कहा कि बेटे रो मत। मैं तुझे इसके बदले डेढ़ बीघा जमीन दूंगी लेकिन उस पर मकान मत बनाना बल्कि पेड़-पौधों से भर देना। बेटे ने यह कर भी दिखाया।


जिक्र हो रहा है देहरादून जिले के ऋषिकेश रोड पर टिहरी बांध विस्थापित क्षेत्र के वार्ड नंबर नौ, कोटी अठूरवाला में रहने वाले लगभग 30 साल के यशपाल सिंह का। यशपाल को उनके जानने वाले राहुल के नाम से जानते हैं। उनको घर का पता है, पेड़ों वाला घर। फूलों की बेलों, क्रीपर्स से ढकी चहारदीवार, पाम ट्री की पहरेदारी वाला घर राहुल का है। उनके घर सहित लगभग डेढ़ बीघा भूमि पर लगभग एक हजार पेड़, पौधे, जिनमें कई सजावटी हैं और बहुत सारे फूलों और फलों के हैं। व्यावसायिक पौधे भी बड़ी संख्या में हैं।

यशपाल कहते हैं, मां तो अब दुनिया में नहीं हैं, पर उनसे पेड़ों के नाम पर मिली डेढ़ बीघा जमीन को मैंने पेड़ों का घर बना दिया है। मां ने अपना वादा पूरा किया और मैं पर्यावरण से किए उस वादे को पूरा करने में जुटा हूं, जो अब तक लगभग 15 हजार पौधे लगाने तक पहुंच गया है। अगर 75 साल तक जिंदगी रही तो देशभर में एक करोड़ पौधे लगाने का संकल्प पूरा करने में जुटा रहूंगा।


उन्होंने ये पौधारोपण और बीजारोपण देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल, नैनीताल, रुद्रप्रयाग, चमोली और अल्मोड़ा जिलों में चले अभियान के दौरान किया। कई राज्यों और विदेश से भी फूल पौधे लाए हैं।

घर को कहते हैं कि मेरा नहीं है, यह घर पेड़ों का है, उन पर मंडराती तितलियों का है, यहां चहचहाने वाली चिड़ियों का है। मुझे अच्छा लगता है, जब लोग क्रीपर्स से ढंकी बाउंड्रीवाल और विविध रंगों वाली Bougainvillea  से लदी पेड़ों की टहनियों को बैकग्राउंड में रखकर सेल्फी लेने की इच्छा रखते हैं। घर के आंगन में सफेद बैंगनी Chinese wisteria  फूलों की चादर सबको लुभाती है। लोग, घर आंगन में पेड़ों की छाया में कुछ देर बैठने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

बताते हैं, वो पेड़ों की न तो छंटाई करते हैं और न ही कटाई। वो चाहते हैं, ये पेड़ उसी तरह अपनी ऊंचाइयों पर पहुंचें, जैसे कि एक जंगल में होते हैं। उनका मकसद, आसपास दिखाई दे रहे कंक्रीट के बीच जंगल खड़ा करना है। कई बार उनको विरोध झेलना पड़ता है।

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सड़क किनारे स्थित भूमि पर राहुल ने बांस, आम, लीची, कटहल सहित फूलों की कई प्रजातियां बोई हैं। उनका विचार अभी और पौधे लगाने का है, क्योंकि उनको यहां जंगल तैयार करना है। बताते हैं, उनके पास कई बार इस जमीन को खरीदने वालों ने ऑफर भेजे हैं। वो इस भूमि के दो से ढाई करोड़ तक देने को तैयार हैं, पर मैंने इस जमीन को पेड़ों के नाम कर दिया है। यहां सिर्फ और सिर्फ पेड़ रहेंगे। तेजी से कंक्रीट का जंगल बनते अठूरवाला क्षेत्र में, यह जगह पक्षियों और कीट पतंगों सहित कई तरह के जीवों के लिए सुरक्षित प्रवास है।

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