चौबट्टाखाल| राजपाल व केशर की खींचतान| कोई तीसरा न लपक के पंजे का निशान|साभार-वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत
सिटी लाइव टुडे, साभार-वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत
पूर्व में बीरोंखाल नाम से जानी जाने वाली चौबट्टाखाल सीट पर प्रत्याशी को लेकर फिलहाल कांग्रेस हाई कमान पशोपेश में है। हरदा के करीबी माने जाने वाले राजपाल बिष्ट स्वाभाविक दावेदार होने के बावज़ूद मनीष खंडूरी की पैरवी की बुनियाद पर पूर्व जिपं अध्यक्ष केशर सिंह नेगी भी आखिरी दिन तक हथियार डालने के मूड में नहीं हैं। वहीं, इसमें कोई दो राय नहीं कि इस सीट पर मतदाताओं के मध्य स्थानीयता जैसा भावनात्मक मुद्दा मतदान के दिन मतदाताओं के सर चढ़ कर बोलता है।
इसी का नतीजा रहा है कि राजपाल बिष्ट की क्षेत्र में सतत उपस्थिति व सहानुभूति के बावजूद वह लगातार दो मर्तबा नाकामियाब रहे हैं। टिकट को लेकर दावेदारी के क्रम में हाल ही में कांग्रेस में घर वापसी करने वाले बीरोंखाल के प्रमुख राजेश कंडारी ने भी इस बार जोर शोर से आवेदन किया है । निसंदेह इस युवा नेता का क्षेत्र में अपना व्यक्तिगत प्रभाव है, इसी का परिणाम था कि वर्ष 2012 के विस् चुनाव में पहाड़ में अमान्य मानी जाने वाली पार्टी के सिंबल पर उन्होंने हाथी पर सवार होकर चौबट्टाखाल को फतह करने की ठानी और अच्छी खासे करीब 5 हज़ार मत भी हासिल किए। बीरोंखाल ब्लॉक का प्रमुख होंने के साथ इनकी पत्नी का जिपं सदस्य होना इनकी क्षेत्र में पकड़ को भी पुख़्ता करता है। ज़ाहिर है स्थानीयता का जज़्बाती फैक्टर इनके पक्ष में जाना तय है। स्थानीय दावेदारों की फेहरिस्त में एक नाम पोखड़ा के प्रमुख सुरेंद्र सिंह सूरी भाई का भी है जो निर्विवाद रूप से जमीन से जुड़े हुए युवा नेता हैं। वहीं स्थानीयता को आधार माना जाए तो कवींद्र इष्टवाल भी एक अहम नाम है, लगातार क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनाये हुए हैं।
किंतु पार्टियों के अपने कुछ और मानक भी होते हैं। मसलन ,जबरदस्त तरीके से ठाकुर बहुल इस सीट पर चुनावी प्रपंच के शिकंजे पर वह मजबूती से फिट शायद ही बैठे। स्थानीय आवेदनों में एकेश्वर के पूर्व प्रमुख जसपाल सिंह का भी नाम है। यदि सभी स्थानीय दावेदार एक मजबूत नाम पर लामबंद होते हैं तो कांग्रेस की टिकट सूची में चौबट्टाखाल से चौंकाने वाला नाम भी सामने आ जाये तो आश्चर्य न होगा। जिस तरह से नेताओं और पार्टियों में अदला बदली आने वाले एक पखवाड़े में चरम पर होगी, ऐसे में कोई और चेहरा भी इस सीट पर कांग्रेस का से सेनापति हो सकता है। इस क्षेत्र के कुछ भारी भरकम नेता बड़े नाम हैं, जो ऐन वक्त पर अप्रत्यशित रूप से यहां प्रकट हो सकते हैं।
राजपाल और केशर की “आका आधारित” रार कहीं किसी स्थानीय दावेदार की लॉटरी खुलने का ज़रिया न बन जाये। क्योंकि पार्टी हाई कमान भी इस बात को लेकर सजग है कि यहां चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में स्थानीयता एक अहम फैक्टर बन कर निकलता है जो मतदान में काफी प्रभावी हो जाता है। मूल रूप से पोखड़ा के महाराज परिवार को टक्कर देने के लिए कांग्रेस भी कहीं विस् क्षेत्र के ही किसी दावेदार या अन्य बड़े नेता पर दांव न खेल दे…