अन्य सभी हिमालयी राज्यों में सख़्त भू क़ानून तो उत्तराखण्ड में क्यों नहीं | डा. महेंद्र राणा

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउसविकास श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजनैतिक विश्लेषक डा महेंद्र राणा ने उत्तराखण्ड के वर्तमान लचीले भू क़ानून पर विरोध प्रकट करते हुए कहा है कि अगर यह कानून बना रहा तो भू मफ़ियाओं का प्रदेश की जमीनों पर कब्जा हो जाएगा। आर्थिक रूप से कमजोर स्थानीय लोग बेबस और लाचार होकर अपनी जमीनों को बाहरी लोगों के हाथ में जाते हुए देखते रहेंगे। कानून के लचीले बनने से पहाड़ में खेती की जमीन कम हो जाएगी । राज्य बनने के बाद पहली निर्वाचित उत्तराखंड सरकार में भू क़ानून लाया गया जिसके अधिनियम की धारा-154 के अनुसार कोई भी किसान 12.5 एकड़ यानी 260 नाली जमीन का मालिक ही हो सकता था। इससे ज्यादा जमीन पर सीलिंग थी लेकिन त्रिवेंद्र सरकार ने अधिनियम की धारा 154 (4) (3) (क) में बदलाव कर उपधारा (2) जोड़ कर न केवल 12.5 एकड़ की बाध्यता को समाप्त कर दिया। बल्कि किसान होने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी। इसी कानून की धारा-156 में संशोधन कर तीस साल के लिए लीज पर जमीन देने का प्रावधान भी कर दिया। ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का एकमात्र राज्य है।

डा. राणा ने चिंता जताई कि औद्योगिक निवेश के नाम पर पूंजीपतियों के लिए पहाड़ में भूमि खरीदने का दरवाजा खोल दिया गया। इससे पहाड़ में जमीन नहीं बचेगी और लोग पलायन को मजबूर हो जाएंगे। वर्ष 2002 के बाद एनडी तिवारी सरकार ने राज्य से बाहर के व्यक्तियों के लिए भूमि खरीद की पहली बार सीमा तय की। उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम में यह प्रावधान किया कि बाहरी व्यक्ति राज्य में 500 वर्ग मीटर से अधिक भूमि नहीं खरीद सकेगा। वर्ष 2007 में राज्य में भाजपा की सरकार बनीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री जनरल (सेनि.) बीसी खंडूड़ी बाहरी व्यक्तियों के लिए भूमि खरीदने की सीमा को घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया। भूमि खरीद का यह प्रावधान भी घर बनाने के लिए किया गया।
वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार द्वारा अपने ही पूर्व मुख्यमंत्री श्री भुवन चंद खंडूरी के द्वारा लाए गये नियमों को पलटकर पर्वतीय क्षेत्रों में बाहरी राज्य के उद्यमी के लिए 12.50 एकड़ से अधिक भूमि खरीद का रास्ता खोल दिया गया। साथ ही खरीदी गई कृषि भूमि को अकृषि करने की छूट दे दी गई।

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उत्तराखंड में कृषि भूमि का रकबा निरंतर घट है ,डा महेंद्र राणा ने बताया कि राज्य में कृषि भूमि का रकबा अब केवल 9 प्रतिशत के आसपास रह गया है। इसका मतलब साफ है, उत्तराखंड की सरकार की चिंता में पर्वतीय कृषि कोई मुद्दा न पहले था और न अब है। डा. महेंद्र राणा ने उत्तराखंड सरकार से मांग की है कि जब सभी दूसरे हिमालयी राज्यों में सख़्त भू कानून हैं तो फिर उत्तराखंड में क्यों नहीं ? सरकार को राज्य की मूल संस्कृति एवं जल ,जंगल और ज़मीन बचाने के लिए एक सशक्त उत्तराखंड भू कानून लाना चाहिए।

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