ढांगा रे ढांगा रे | रैबासी-प्रवासी मिलजुल कर रहे मिलीजुली खेती | द्वारीखाल से जयमल चंद्रा की रिपोर्ट

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गढ़वाल में इन दिनों तैयारी होती है मिश्रित खेती की
मिश्रित खेती की तैयारी में जुटे हैं रैबासी व प्रवासी
सिटी लाइव टुडे, द्वारीखाल-प्रस्तुति-जयमल चंद्रा

ढांगा रे ढांगा रे, ना जा तैंल्या फांगा,,,,,,,जी हां, इन दिनों गढ़वाल में रैवासी व प्रवासी यही गीत गुनगुना रहे हैं वो भी खेतों में हल लगाते हुये। नजारा सच में ऐसा कि मन भावन सावन हो जाये। गढ़वाल में इन दिनों मिश्रित खेती का नजारा देखने को मिल रहा है। गढ़वाल में मिश्रित खेती पारंपरिक पद्धति है। पहले आपको मिश्रित खेती के बारे में ही बता देेते हैं। नाम के अनुरूप मिश्रित खेती यानि मिलीजुली खेती। साधारण शब्दों में कहें तो जब एक ही जोत या खेत में तीन-चार प्रकार के अनाज की खेती की जाती है तो इसे मिश्रित खेती कहा जाता है।

इन दिनों गढ़वाल में कई जगहों पर मिश्रित खेती ही की जा रही है। दरअसल, करीब एक-डेढ़ महीने पहले कोदा बौया गया है और अब खेतों में कोदा उग भी चुका है। जैविक खेती प्रशिक्षक जयमल चंद्रा बताते हैं कि इन वक्त कोदे की उगी फसल में ही गैथ व उड़द भी बोये जाते हैं। इसके लिये इन खेतों में हल लगाया जाता है। इससे खेतों का खर-पतवार भी समाप्त हो जाता है।

जैविक खेती प्रशिक्षक जयमल चंद्रा बताते हैं कि अब करीब एक माह बाद कोदा की फसल पककर तैयार हो जायेगी तो कोदा निकाल लिया जायेगा और टलनियां खेतों में खड़ी रहेगी। इसके बाद इन्हीं टलनियों के सहारे गैथ व उडद की फसल होगी। कोदे की इन टलहियों में गैथ व उडद की बेल लिपटी रहती है और इस प्रकार से गैथ व उडद की फसल पककर तैयार होती है।

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द्वारीखाल ब्लाक के बमोली गांव में इन दिनों मिश्रित खेती की तैयारी चल रही है और खेतों में हल लगाया जा रहा है।

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