Garhwal Samachar..यहां लीजियेगा “ढुंगला “का ” जायजा “| इन दिनों यहां खूब बन रहा ” ढुंगला “| कमल उनियाल की Report

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सिटी लाइव टुडे, कमल उनियाल, द्वारीखाल

पलायन और आधुनिकता के चकाचैंध के चलते पारंपरिक व्यंजन हाशिये पर पहुंच गये हैं। यूं कहा जाये कि गुजरने जमाने की बात हो गयी है तो कोई अतिशयोंक्ति नहीं होगी। औषधीय गुणों से भरपूर ये पारंपरिक व्यंजनों यदा-कदा देखने को जरूर मिलते हैं। लेकिर रोजमर्रा की जिंदगी पारंपरिक व्यंजनों ने भी पलायन कर लिया है। एक ऐसा ही पारंपरिक व्यंजन है ढुंगला, जिसने भी पलायन कर लिया है। लेकिन, जरा ठहरिये, इन दिनों गौं-गुठ्यारों में ढुंगला का स्वाद चखने को मिल भी रहा है। बात हो रही है पौड़ी जनपद के द्वारीखाल क्षेत्र की। यहां इन दिनों में प्रवासी गांव आये हैं तो ढुंगला भी खूब बन रहा है।

प्रतीकात्मक फोटो


दरअसल, जून की महीने में तपती गर्मी से निजात पाने के लिए प्रवासी भाई परिवार के साथ गाँव में आकर अपनी पुरानी संस्कृति और रीत रिवाज को पुर्नजीवित कर रहे हैं और रेवासी और प्रवासी आपसी पारम्परिक रीत रिवाज मेल मिलाप और विलुप्त होते संस्कृति को संजोने का प्रयास कर रहे हैं।


ऐंसी ही उत्तराखंड की एक सुखद परम्परा है सामूहिक रूप से ढुँगला बनाना सभी गाँव वाले आटा और दाल इकठ्ठा करके ढुँगला आटे से बना पकवान बनाकर खाते है। ढुँगला जिसे आटा के साथ घी मिलाकर गूँथकर बनाया जाता है इसके लिए एक जगह पर लकड़ी जलायी जाती है जिसके आँगारो में गूंदा हुआ आटा को तिमला के पेड की चैडी हरी पत्तो के अन्दर अंगारो में रखे गरम छोटे दो पत्थर के बीच रखकर इसे अंगारो में रखा जाता है और यह अंगारो में पककर इसके स्वाद के दिवाने सब हो जाते है फिर दाल के साथ सभी बैठकर बड़े चाव से इसे खाते है।

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सेवानिवृत्त सूबेदार मेहरबान सिंह, रावत, जगदीश रावत पृथ्वी रावत सुरेश रावत भरतलाल ने बताया अनेक प्रकार की मिक्स दाल बनायी जाती है जिसके साथ खाने में ढुँगला का स्वाद का आनन्द लिया जाता है इस्का स्वाद की महक हर साल गाँव में सभी रेवासी तथा प्रवासी लेते हैं। ढुँगला को गुरू गोरखनाथ का प्रसाद माना जाता है। इसे स्थान देवता और ग्राम देवता में चढाया जाता है। ढुँगला दाल आज भी एक प्रचलित रिवाज है तथा सामुहिक एकता का भी प्रतीक है।

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