Attention..आज शाम 6 बजकर 9 मिनट @ News Netra पर कुछ बड़ा होने वाला है। हकीकत भी बयां करेगा और रूला भी देगा|Click कर जानिये क्या है मामला
CITYLIVE TODAY. MEDIA HOUSE
नींद अभी खुली नहीं थी कि मेरे सपने गये कहां, बूढ़ा पर्वत रोता मेरे अपने गये कहां।
पलायन का दर्द आखिर कब खत्म होगा। यह सुलग रहा है और जवाब है कि उलझता जा रहा है। पलायन का जिक्र ज्यादा है और फिक्र कम है।
इशारा आप समझ ही गये है कि सरकार व सरकारी मशानरी की ओर है। यह बात ठीक भी है कि पलायन रोकने के लिये पलायन आयोग भी बना दिया गया है लेकिन नतीजा सबके सामने ही है। लेकिन रंगकर्मी और साहित्यधर्मी लोग पलायन रोकने व पलायन के दर्द का बयां करने के लिये बेहतर काम कर रहे हैं। यहां जिक्र ऐसी ही फिल्म का का रहे हैं जो पलायन के दर्द बखूबी बयां करती है। शाॅर्ट फिल्म दादी इंतजार अपनों का ऐसी है। यकीन मानिये देखेंगे आंखों ने आंसुओं का सैलाब उमड़ पडेगा। यह शाॅर्ट फिल्म 20 मार्च-बुधवार 2024 यानि आज न्यूज नेत्रा यू-ट्यूब पर अपलोड भी हो रही है। गुजारिश यह है कि इसे देखिये जरूर। यह भी अनुरोध है कि पलायन रोकने के लिये आज और अभी से अपने स्तर से भी पहल व काम करें।
किशना बगोट के निर्देशन में बनी यह शाॅर्ट फिल्म दादी इंतजार अपनों का बेहद खास है। इसमें पलायन का दर्द कूट कूट के भरा हुआ है। शाॅर्ट फिल्म दादी इंतजार अपनों का के लेखक भी किशना बगोट ही है। जबकि निर्माता रितिका पयाल राणा हैं। इस फिल्म का अभिनय पक्ष बेहद उम्दा दर्जे का है तो संवाद भी मन को छू लेने वाला है। वैसे तो पूरी शाॅर्ट फिल्म दादी इंतजार अपनों का ही खास है लेकिन इस फिल्म का आखिरी सीन रूला देने वाला है और सवालों के अंदर भी सवाल पैदा कर देता है। जिसका जवाब देते नहीं बन रहा है।
अब बात जरा शाॅर्ट फिल्म दादी इंतजार अपनों का पर प्रकाश डालते हैं। यह फिल्म उत्तराखंड के तारकेश्वर की सच्ची घटना पर आधारित है। इस फिल्म की कहानी में यह दिखाया गया है कि किस तरह से उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र पलायन के वजह से खाली हो चुके हैं। कहानी में एक परिवार अपने गांव को बरसों पहले छोड़कर विदेश में नौकरी करने चला जाता है एवं वह अपने गांव में अपने माता.पिता को अकेला छोड़ देता है।
कई दशक बीत जाने के बाद बूढी दादी का पोता विदेश से उत्तराखंड घूमने आता हैए तब तारकेश्वर मंदिर में देवता पोते को उसके घर जाने का इशारा देते हैंए तब पोता अपने गांव जाता है और वहां खंडहर हो चुके घर पहुंच कर वह देखता है कि उसकी दादी जो गांव वालों के नजर में कई दशक पहले मर चुकी थी अपने परिवार के लोगों का घर में बैठ इंतजार कर रही थी। जैसे ही पोता अपने दादी के पास पहुंचता है और दादी पोते को गले लगाती है तभी बूढी दादी पूर्ण रूप से कंकाल में तब्दील होकर जमीन पर भरभरा कर गिर जाती है और यहीं पर यह फिल्म समाप्त हो जाती है।