वाह गुरू जी वाह|Sandeep Rawat| लोक माटी में तैयार रहे लोक के रंगों की ” पौध “|नयी पीढ़ी में यूं भर रहे लोक के रंग|देखिये वीडियो
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस
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यह बात ठीक भी है कि वर्तमान में युवा पीढ़ी लोक भाषा से दूर होती जा रही है। कारणों की समीक्षा भी हो रही है लेकिन रिजल्ट तो नहीं मिल रहा है। लेकिन जरा ठहरिये, यहां युवा पीढ़ी में लोक-संस्कृति की धारा प्रवाहित भी हो रही है और युवा पीढ़ी को लोक के रंग में रंगा भी जा रहा है। लोक में डूबकर रचना लिखने वाले सशक्त हस्ताक्षर शिक्षक संदीप रावत की शुरू की गयी एक पहल आकार लेती जा रही है। वि़द्यालय में गढ़वाली भाषा में प्रार्थना शुरू करने की यह पहल अब देखते ही देखते रंग ला रही है और लोक रंग के रंगों को भी तन व मन में उतार रही है। गढ़वाल के अलावा अब कुमांऊ के कई स्कूलों में कुछ-कुछ ऐसा ही होने लगा है। संदीप रावत की इस पहल को और आगे ले जायें। आइये, हम और आप भी कुछ ऐसा ही करें।
‘तेरु शुभाशीष च रे जो कुछ बि पायि मिन ‘
रचना एवं धुन -संदीप रावत
संदीप रावत राइंका धद्दी घंडियाल, बडिगयारगढ़ में रसायन विज्ञान के प्रवक्ता पर कार्यरत हैं। संदीप रावत लोक भाषा में कई किताबें लिखकर प्रकाशित भी कर चुके हैं। लोक भाषा के प्रति अनुराग ने हमेशा संदीप के मन में एक पीड़ा पैदा करके रखी है। पीड़ा यह कि युवा पीढ़ी लोक संस्कृति से दूर क्यों भाग रही हैं। यह सवाल बार-बार कौंधता हैं।
करीब-करीब चार साल पहले संदीप रावत ने अनुभव प्रयोग किया और अपने ही स्कूल में गढ़वाली में प्रार्थना करना शुरू कर दी। प्रार्थना की रचना संदीप रावत ने खुद ही की। धुन भी स्वयं बना डाली।
पहल शुरू हुयी तो विस्तार भी होने लगा है। स्वंय संदीप रावत बताते हैं कि आज गढ़वाल और कुमांउ में भी इसी प्रकार की पहल शुरू हो गयी है। संदीप रावत की यह पहल संदेश भी देती है। लोक भाषा के संरक्षण के लिये पहल कहीं भी और कभी भी की जा सकती है। उनकी यह पहल कई शिक्षकों के लिये भी प्रेरणा देती है। निश्चित ही संदीप रावत के इस प्रयास व पहल की केवल सराहना नहीं करनी चाहिये बल्कि इसका अनुकरण भी किया जाना चाहिये।
बहरहाल, उम्मीद जगी है कि संदीप के जैसे और भी शिक्षक कुछ ऐसा ही करेंगे। हां, सुनने में आ रहा है कि कई अन्य शिक्षकों ने भी कुछ ऐसा ही करना शुरू कर दिया है। ये अच्छी बात है। आओ, लोक संस्कृति का कम से कम एक दीपक हम भी जलायें। चलिये, इस नेक कार्य का शुभारंभ आज व अभी करें। आइयें शुरू करते हैं।