बात गौं-गुठ्यार की| मन-भावन-सावन कर देती है यहां के खेतों की हरियाली| जयमल चंद्रा की रिपोर्ट

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सिटी लाइव टुडे, जयमल चंद्रा, द्वारीखाल

पौडी गढ़वाल पर्वतीय ज़िला अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिये जाना जाता है।आज से कुछ वर्षों पहले सीढ़ीदार नुमा खेतों में लहलाती पम्परागत फसलों कि हरयाली बरबस किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर देती थी। लेकिन धीरे-धीरे यह प्राकृतिक सुंदरता लुप्त होने लगी है। गेंहू,धान, मंडुवा,उड़द, गहत आदि की फसलें सीढ़ी नुमा खेतों में लहलाती थी,चारों ओर जहां भी नजर जाती थी हरे-भरे खेत ही नजर आते थे।आज इस तरह के नजारे देखने को आँखे तरसने लगी हैं।


द्वारीखाल ब्लॉक के कोठार,हथनूड़, पोगठा, किनसूर आदि गांवो में आज भी सीढ़ीनुमा खेतों में लहलाती हुई फसलें देखने को मिल जाती हैं। आज भी इन गांवो के किसान परम्परागत व नगदी दोनों प्रकार की खेती कर रहे हैं।ग्राम कोठार के बयोबृद्ध किसान आनंद सिंह नेगी बताते हैं कि आज से बीस साल पहले चारों ओर हर खेत मे खेती होती थी।यहां के ग्रामीण किसान सब खेती करते थे।प्रत्येक किसान के पास बैलों की जोड़ी हुआ करती थी।अपने लिए भरपूर खेती होती थी,व बेचकर कमाई भी होती थी।लेकिन आज पलायन के कारण खेत बंजर होने लगे है।गांव में आधे से ज्यादा लोग शहरों में जाकर बस गए है।आधे से भी कम खेतों में खेती हो रही है। जंगल बढ़ने लगें है,जिस कारण जंगली जानवरों का बसाव गांव के नजदीक होने लगा है।और ये जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुचाने लगे है।किसानों को अपनी उगाई फसल बचाने के लिए बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।दिन में बंदर व लंगूरों का आतंक तो रात को जंगली शूअर,खरगोश,बारहसिंगा,हिरण आदि का प्रकोप,किसान क्या करे।


किंसुर के ग्राम प्रधान दीप चंद्र शाह बताते हैं कि द्वारीखाल ब्लॉक के इस पूरे बेल्ट में आज भी सबसे ज्यादा खेती की जा रही है।इसके लिए कृषि बिभाग से भी मदद ली जा रही है,लेकिन किसानों की परेशानी का सबब बने जंगली जानवरों से खेती के बचाव के लिए साशन-प्रसाशन को कोई कारगर कदम उठाने की जरूरत है।नही तो अन्य क्षेत्रों की तरह यह क्षेत्र भी लहलाती फसलों के लिए तरसने लगेगा।

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आज की ये कहानी द्वारीखाल ब्लॉक के इन गांवो की ही नही बल्कि उत्तराखंड के सभी पर्वतीय ज़िलों की है।धीरे-धीरे खेत दर खेत बंजर होते जा रहे हैं।गांवो की जनसंख्या कम होती जा रही है,लोगो का पलायन लगातार हो रहा है।वह दिन दूर नही जब ये खूबसूरत पर्वतीय गांव जंगलो में तब्दील होकर मानव रहित हो जाएंगे। सरकार को इन पर्वतीय ज़िलों से पलायन रोकने,कृषि के विकास व खेती को नुकसान पहुचाने वाले जंगली जानवरों से बचाव के लिए कोई रणनीति धरातल पर उतारनी ही होगी।

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