बचपन का अंदाज भी बदला, अब बचपन पर चढ़ा ऐसा रंग| कमल उनियाल की Report
सिटी लाइव टुडे, कमल उनियाल, द्वारीखाल
कहाँ खो गया, वो शरारती बचपन।
खेल्यूँ मा रंगमत, होलू ग्वेर छोरा,
अटकदा गोरु, घमणादी घान्डी।
उखी फुन्डे होलू, खत्यूँ मेरु भी बचपन,
उकरी सकली त ,उकरी की लेई।
नरेन्द्र सिह नेगी का गाया यह गीत
नटखट बचपन की वास्तविकता
की व्यथा को दर्शाता है। आप हम
सभी देश के किसी कोने में निवास कर रहे हो पर अपने बचपन की मीठी यादे गाँव की माटी की सौंधी महक कभी नहीं भूल सकते। दुनिया में सबसे मूल्यवान कोई चीज थी वह हमारा बचपन था। लेकिन अब आपको नटखट बचपन शरारत करते बच्चे देखने को नही मिलेगे।
इनका बचपन मोबाइल देखने में खो गया है इन बच्चो ने बहारी दुनिया से मुँह मोड लिया है।
समय ही था जब हम गाँव मे बच्चों को गली मौहल्ला, खेतो में गुल्ली डंडा, खो, खो, लुका छिप्पी, कबड्डी झुंड बनाकर काफल तोडने, हिसर खाने भमोरा खाने के लिए देखे जाते थे। जब किसी बच्चे का नाना मामा बुआ आती थी तो सभी बच्चे दौडकर वहाँ पहुँच जाते थे। उस समय की नारंगी रंग की टाफी पाकर बेहद खुश हो जाते थे।
लेकिन अब जैसे विज्ञान और तकनीकी ने विकास किया तब से बच्चो का बचपन लेपटाप, मोबाइल फोन को देखने में खो गया है। यहाँ तक घर में हंसी ठिठोली से गुँजता था। अब एक दूसरे से बातचीत नही होती जिस कारण बच्चों की संवेदना शक्ति कम हो गयी हैं।
स्थानीय निवासी भारत नेगी अजय डोबरियाल मन्था देबी ने बताया कि यह सही है कि विज्ञान और तकनीकी से विकास हुआ है पर वह सुनहरा बचपन भी खो गया है। पाँच साल के बच्चे भी मोबाइल में ऐसे खो गये हैं उन्हें बहारी दुनिया अपनी संस्कृति रीति रिवाज नाते रिश्ते से कोई सारोकार नही रह गया है जिसके दुष्परिणाम की कलपना करना भी
असम्भव है