श्रुति लखेड़ा @ ऊन व्यवसाय को क्यों नहीं मिल रहा बढ़ावा.. कैसे मिलेगा |अनिल शर्मा की Report

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सिटी लाइव टुडे, देहरादून| लालढांग, अनिल शर्मा

कहा जा रहा है कि इन दिनों लालढांग की बेटी श्रुति लखेड़ा ने सियासत से थोड़ी सी दूरी बना ली है। ऐसा इसलिये भी कहा जा रहा है कि क्योंकि जिला पंचायत चुनाव के बाद श्रुति की राजनीतिक गतिविधियां कम सी हो गयी हैं लेकिन इन दिनों श्रुति लखेड़ा बड़े अभियान में जुटी हैं। जल, जंगल व जमीन के मुद्दों को लेकर श्रुति बेहद गंभीर हैं और मुखर भी। उन्नत कृषि के लिये वैज्ञानिक तौर-तरीके अपनाने को लेकर श्रुति गंभीर हैं। उत्तराखंड के परंपरागत व्यवसायों को सीधे रोजगार से जोड़ने के लिये क्या नीति होनी चाहिये और कैसे इस नीति को धरातल पर उतारा जाये, इस पर श्रुति का खासा फोकस है। नारियोें को आत्मनिर्भर बनाने पर भी श्रुति का खासा फोकस है। अभी हाल में ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रूरल साइंस कांग्रेस में महिला उद्यमियों से विस्तृत चर्चा की। इसमें श्रुति महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। पेश है सिटी लाइव टुडे की यह खास रिपोर्ट।

प्राकृतिक रेशों में उत्तराखंड की हर्षिल ऊन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह कई महिला किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है।
आज इस व्यवसाय को उचित बढ़ावा ना मिलने के कारण और सही तकनीकी ज्ञान ना मिलने के कारण सीमित हो चुका है।
आज non-woven से ले कर फ़ाइबर composites की बढ़ती डिमांड को हम तकनीकी ज्ञान के अभाव में केंद्रित नहीं कर पा रहे हैं।
आज acoustics और sound proofing के लिए भी ऊन के रेशे को उपयुक्त fiber माना जा रहा है।
कई तकनीकों जैसे agrotextiles में भी ऊन और cellulose fiber का उपयोग हो रहा है।


keratin technology को विकसित किया जा रहा है । ऊन से keratin extract करके अनेकों आयाम खोजे जा रहे हैं।
परन्तु महत्वपूर्ण यह है की उस शृंखला से ज़मीनी स्तर पर लोगों को जोड़ा जाए।

आज भी sheering कर भेड की ऊन उत्तराखंड के दूरस्त क्षेत्रों के भेड़ पलकों द्वारा फेंकी जा रही है क्योंकि उपयुक्त resource centres नहीं हैं।
खादी और उच्चतम गुणवत्ता के 100% खादी उत्पादों को GI टैग और खादी मार्क जैसी अम्ब्रेला ब्रैंडिंग से इन महिला कारीगरों को इनकी उचित महनत का लाभ मिल पाएगा। यह 100% खादी उत्पाद है ऊन की कताई से ले कर कपड़े की बुनाई तक सब शुद्ध खादी ऊन से निर्मित उत्पाद है।
आज जब हम उत्तराखंड की उत्पाद की बात करें तो पानीपथ और लुधियाना के मशीन मंडे सिन्थेटिक डाई से निर्मित उत्पाद प्रदर्शनियों मे और बाज़ारों में खूब मिल रहे हैं अपितु इन उत्तराखंड की उत्पादों के विशेष बाज़ार हम विकसित करने में विफल रहे हैं।

भार आता है उद्यमियों और कारीगरों पर जो इन उत्पादों को बनाने और बेचने के संघर्ष में जुटे रहते हैं।
आख़िरकार इनके उत्पादों को बीचोलियों और traders ,exporters
द्वारा कम क़ीमतों पर ख़रीद कर ऊँची क़ीमतों और अपनी ब्रांड विकसित कर बेचा जाता है।

इसी लिए इस व्यवसाय से जुड़ने में नयी पीढ़ी रूचि नहीं लेती।
परंतु अगर इसके आयाम खोजे जाए तो हर घर रोज़गार सम्भव हैं।
इसके लिए दो काम करने होंगे।

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  1. processing practices को standardise करना और उचित खादी या handmade मार्क के साथ बेचना।
  2. अपने बौधिक ज्ञान या intellectual rights को संरक्षित करना जैसे cluster और GI tags या patents लेना।

यह दोनो उत्तराखंड को मुख्य आय का स्रोत वाले sectors देने में बहु आयाम विकसित करने में कारगर होंगे।
किसी exporter की नहीं Uttarakhand को एक ब्रांड बनाने में सहायक होंगे। तभी हम ज़मीनी स्तर पर लोगों की आय और रोज़गार को सुरक्षित कर पाएँगे।

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