ऐसे तो गुम हो जायेगी ढोल के बोल व दमाऊ की थाप| कमल उनियाल की Report
सिटी लाइव टुडे, कमल उनियाल, द्वारीखाल
पहाड़ की वैभवशाली व गौरवशाली के प्रतीक कब गुमनामी के अंधेरे में खोते जा रहे हैं। आधुनिक जीवन शैली व पाश्चात्य के बढ़ते प्रभाव के चलते पारंपरिक वाद्य यंत्र भी हाशिये पर पहुंच गये हैं। ढोल दमाउ भी इससे अछूता नहीं रहा। तमाम मांगलिक कार्यों में अब ढोल–दमाऊ की जगह बैंड बाजों व डीजे सिस्टम ने ली लगी है। संस्कृति के धरोहर पर मंडराते इस संकट से पहाड़ व संस्कृति प्रेमी हैरान व दुखी हैं।
ढोल दमाउ मसकबीन की मधुर धुन जब कानों को सुनाई देती थी तो मन भाव विभोर हो जाता था। शादी विवाह हो या मुंडन मांगल गीत खुशी के माहौल में पहाड़ का पौराणिक वाद्य यंत्र ढोल दमाउ के बगैर अधूरा माना जाता था। ढोल दमाउ में पहाड़ की संस्कृति की आत्मा बसती थी। पर विडम्बना ही है इनकी जगह पर आधुनिक बैंड बाजा ने ले लिया है धीरे धीरे यह कर्णप्रिय वाद्य यंत्र विलुप्ति की कगार पर खडा है।
ना वासा घुघुती चेता, की खुद लगी च माँ मैत की।
चल देवरी डाँडा भमोरा पकयान, चल देवरी डाँडा भमोरा खयोला।
गाडा गुलबन्दा गुलबन्द क नगीना, तेकू मेरी सासू ब्आरी क ऐ गेना।
जैसे मार्मिक गीत जब पहाडी शादी में ढोल दमाउ और मसकबीन के साथ बजते थे तो सभी घराती बराती भाव विभोर हो जाते थे। बरात आते समय जाते समय शब्द नौबद सहित नौ ताल इस ढोल सागर में समायी रहती थी। ढोल दमाउ का रिश्ता शिव शक्ति जैसा है मान्यता है ढोल की उत्पत्ति भगवान शिव के डमरु से हुयी है जब मंडाण में ढोल दमाउ बजते थे देबी जागर ढोल वादक लगाते थे नाचने वाले पर देवता अवतरित होते थे।
बुजुर्ग प्रेमलाल हीरा सिंह शेर सिह रामलाल ने बताया आधुनिक शादी में फूहड गाने बैंड बाजे ने शादी में नीरसता घोल दिया है जिससे युवा पीढी अपनी पुरानी संस्कृति तेजी से खो रही है जो की चिंता का बिषय है।