पितृपक्ष| पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर| प्रस्तुति-आचार्य पंकज पैन्यूली

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस


पितरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का महान अवसर शुरू हो चुका है। 10 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो चुके हैं। कहते हैं कि पितृपक्ष में पितरदेव वायुस्वरूप धरती पर विराजते हैं और अपने वंशजों को आशीष देते हैं। पेश है सिटी लाइव टुडे मीडिया हाउस की यह खास रिपोर्ट जो कि पितृपक्ष पर केंद्रित है।

पितृ पक्ष में पित्रों का पूजन,तर्पण,केवल परम्परा का निर्वाह मात्र नही है,अपितु पितृ ऋण से मुक्त होने व पित्रों की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना का महान अवसर हैं। संसार में जितने भी मनुष्य हैं,वे सब के सब जन्म दात्री माता-पिता सहित दादा,दादी,नाना,नानी आदि उन सभी जेष्ठ-श्रेष्ठ परिजनों के उपकारों के बोझ के ऋणी होते हैं, जिनका हमारे पालन-पोषण से लेकर जीवन के हर कठिन मोड़ पर अथवा सुख-दुःख में किसी न किसी प्रकार का महान योगदान होता है।

पितृजनों का यही निःस्वार्थ योगदान,उपकारों का बोझ ही ऋण कहलाता है। हालाँकि यहाँ पर हम केवल माता-पिता को ही केन्द्र में रखकर विषय को समझने का प्रयास कर रहे हैं। आप सभी जानते हैं, कि प्रत्येक माता-पिता बच्चों के जन्म से लेकर उनके,स्वास्थ, शिक्षा,परवरिश,विवाह आदि -आदि आवश्यक विषय-वस्तुओं की प्रतिपूर्ति के लिए,स्वयं की आकांक्षाओं, इच्छाओं को तिलांजलि दे देते हैं। वस्तुतः माता पिता निःस्वार्थ भाव से बच्चों को पूरी सुख-सुविधा देने में स्वयं का बहुमूल्य जीवन दांव पर लगा लेते हैं। फिर भी माता-पिता बच्चों से उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के अलावा उनसे कोई भी अपेक्षा नहीं रखते हैं। लेक़िन हमें माता-पिता के योगदान को कभी भूलना नही चाहिये।

प्रत्येक व्यति का फर्ज बनता है, कि वह विवेक बुद्धि से जीते जी माता-पिता की यथोचित सेवा सुश्रुषा करे। और उनकी मृत्यु के बाद उनके स्मरण में श्राद्ध पक्ष में पिंडदान,तर्पण आदि क्रिया को श्रद्धापूर्वक करे। चूंकि माता-पिता(सभी श्रेष्ठ परिजन) के ऋण हमारे ऊपर इतने ज्यादा होते हैं, कि एक जन्म क्या! जन्म-जन्मांतरों तक भी हम माता-पिता के ऋणों से मुक्त नही हो सकते हैं। और हमारे पास तो केवल मौजूदा जीवन है? शायद इसीलिए प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने हमें सालदर-साल (श्राद्ध पक्ष) के रूप में पितृ ऋण से मुक्त होने का अवसर दिया है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धा पक्ष में अपने दिवंगत माता-पिता की पुण्य तिथि के दिन परम्परा अनुसार पित्रों के निमित्त तर्पण-पिंडदान आदि क्रिया अवश्य करनी चाहिए। तभी हम पितृ ऋण से मुक्त हो सकते हैं।।

वैसे उत्तराखंड के लोग इस मामले में भाग्यशाली हैं, कि यहाँ का लगभग हर व्यक्ति/परिवार प्राचीन काल से ही श्राद्ध पक्ष में पित्रों के निमित्त (तर्पण,पूजन,कन्या भोजन,ब्राह्मण भोजन) आदि क्रियाओं को व्यापक स्तर पर मनाते हुए चले आ रहे हैं।

सितंबर 2022की श्राद्ध तिथियां -पूर्णिमा श्राद्ध – 10 सितंबर 2022

प्रतिपदा श्राद्ध – 10 सितंबर 2022

द्वितीया श्राद्ध – 11 सितंबर 2022

तृतीया श्राद्ध – 12 सितंबर 2022

चतुर्थी श्राद्ध – 13 सितंबर 2022

पंचमी श्राद्ध – 14 सितंबर 2022

षष्ठी श्राद्ध – 15 सितंबर 2022

सप्तमी श्राद्ध – 16 सितंबर 2022

अष्टमी श्राद्ध- 18 सितंबर 2022

नवमी श्राद्ध – 19 सितंबर 2022

दशमी श्राद्ध – 20 सितंबर 2022

एकादशी श्राद्ध – 21 सितंबर 2022

द्वादशी श्राद्ध- 22 सितंबर 2022

त्रयोदशी श्राद्ध – 23 सितंबर 2022

चतुर्दशी श्राद्ध- 24 सितंबर 2022

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अमावस्या श्राद्ध- 25 सितंबर 2022

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