12 आवेदन कूड़ेदान में|अनुकृति का फूल खिला कांग्रेस के गुलदान में|वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत
सिटी लाइव टुडे, वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत
कालोंडांडा के मैदान में कांग्रेस के उन 12 आवेदकों को समझ लेना चाहिए था कि जहां नीति, नियम व निष्ठा जैसे शब्दों का वज़ूद खत्म हो जाता है वहां मौजूदा सियासत की परिभाषा शुरू होती है। इसका ताज़ा उदाहरण लैंसडाउन में कांग्रेस की सूची में शामिल नाम है। अब दीपक व रघुवीर सिंह सहित उन 12 दावेदारों के समक्ष चुनौती है कि किस तरह वह अपने संकल्प को बचा सकते हैं, जो अंतिम क्षण तक हरक या उनकी बहू की लैंसडाउन में एंट्री की जबरदस्त मुख़ालफ़त कर रहे थे।
बेशक अनुकृति भी लैंसडाउन की ही बेटी हैं, उनके ससुर भी इस नाम की पुरानी विधानसभा से दो बार प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। लेकिन पिछले 5 साल से कांग्रेस के नाम निशान के साथ चुनावी तैयारियों में लगे अनेक जमीनी नेताओं का निराश होना लाज़िमी है। यह दावेदार लगातार भाजपा विधायक के खिलाफ 10 वर्षों की एन्टी इनकमबेंसी को कांग्रेस के पक्ष में करने को जी तोड़ मेहनत भी कर रहे थे, लेकिन अचानक सूबे की सियासत में हरक की फरकन का सबसे अधिक नुकसान हुआ है तो लैंसडाउन के उन कांग्रेस नेताओं का हुआ है जो अब क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का ख़्वाब संजोए हुए थे।
बदले हुए हालात में यदि कुछ दावेदार बग़ावत की इन्तेहाँ पार करते हैं तो एन्टी इनकमबेंसी के बावजूद महंत दलीप रावत आसानी से तीसरी बार इस मठ के मठाधीश बनने की दहलीज़ पर होंगे। दूसरा पहलू यह भी है कि निःसंदेह हरक एक करिश्माई नेता हैं, मौजूदा सियासत के दौर में कैसे चुनावी मैदान फतेह करना है, उन्हें बखूबी आता है। लाख नैतिक और कागज़ी विरोध के बाद भी अनुकृति चुनाव जीत जाए, इस संभावना को भी खारिज़ नहीं किया जा सकता।
बहरहाल, हाई कमान के फैसले से निराश दावेदार कालोंडांडा के घने कोहरे में घिरे हैं, किस राह जाएं, यह तय करना आसान नहीं। निर्दलीय मैदान में उतरने को एकजुटता एकमुठता से जंग लड़ना होगा, अन्यथा दलीप या अनुकृति का विधानसभा जाना तय है। या फिर कौन सांपनाथ कौन नागनाथ का फैसला कर इन निराश दावेदारों को नैपथ्य में रह कर खेल खेलना होगा