गंगा-जमुना के दोआब में बिछते साढ़े 12 हज़ार+.. करोड़ रुपए | वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत की रिपोर्ट

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CITYLIVE TODAY.. AJAY RAWAT

असल समस्या कोई सड़क की गुणवत्ता की भी नहीं, समस्या है कुदरत की सनातन शक्ति के समक्ष इंसानी जिद की,तथाकथित विकास की हबस में हमारे अंधे होने की। काबिल भूगर्भ साइंसदां कई मर्तबा कह चुके हैं कि हिमालय एक जवान परबत है यह कभी भी अंगड़ाई ले सकता है , इसकी मांस पेशियां अभी विकासशील हैं, किंतु सीमेंट कंक्रीट को विकास का पैमाना मान चुके नीति नियंताओं ने आंख, कान सब बन्द किये हुए हैं, क्योंकि हज़ारों करोड़ के बजट जारी होंगे तो ही बन्दर बांट के अवसर पैदा होंगे।

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हाल की बरसात ने साबित कर दिया है कि ऑल वेदर रोड़ के नाम पर खर्च हुए साढ़े 12 हज़ार करोड़ व इसके साथ ही अन्य हज़ारों करोड़ के प्रोजेक्ट बारास्ता गंगा यमुना की धार दोआब तक बह चले हैं। ज़ाहिर है करोड़ों का सीमेंट, कंक्रीट, इस्पात और बिटुमिनस अब गंगा-जमुना के हरे भरे दोआब को भी दूषित करेगा। “रिवर ट्रेनिंग”, जिसके तहत नदियों की बीच धार में एकत्र हो रहे ‘रिवर बेड मटीरियल’ को निकाल किनारों को महफूज़ रखना था उसमें भी खेल चल रहा है, कम समय में अधिक मुनाफा हासिल करने की नीयत से किनारों को ही खोखला किया जा रहा है नतीजतन नदियों पर बने पुलों के पिल्लरों की नींव खोखली हो रही है, और पुल धराशाही हो रहे हैं। न कुदरत में खोट आया है न पहाड़ ने अपनी फितरत बदली है, ऐसी बरसातें सदियों से होती आयी हैं, बदली है तो सिर्फ हमारी नीयत। हबस में अंधे हो चुके हम खुद अपनी कब्रों को खोदने का सामान इकट्ठा कर रहे हैं।

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