ऐेंसू काफल मिन नी खैनी | काफल के पड़े लाले, पढ़िये पूरी खबर

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औषधीय गुणों से भरपूर व लोक-जीवन में रचा-बसा काफल गायब
वनों में आग लगना और बारिश का सही अनुपात न होना प्रमुख वजह

सिटी लाइव टुडे, जगमोहन डांगी, पौड़ी


औषधीय गुणांे से भरपूर और लोक-जीवन में रचे-बसे फल काफल के इस बार लाले पड़े हैं। काफल विहीन पेड़ इसकी गवाही दे रहे हैं। गर्मियों में प्रवासियों को घर आने का न्यौता देने वाला यह फल इस बार ढूढने से नहीं मिल रहा है। वजह जो भी हो लेकिन मुख्यतौर पर जंगलों में लगने वाली आग इसके लिये जिम्मेदार मानी जा रही है।

रसीला फल काफल गर्मियों में उचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। मई के आखिरी सप्ताह व जून माह के शुरू में काफल के लकदक हुये पेड़ों से पहाड़ों की छटा और भी दिलकश हो जाती है। महिलायें कंडी यानि टोकरी में भरकर काफल को ले जाती थीं। एक दूसरे को काफल देने का रिवाज भी चला आ रहा है।
यह मौसमी फल मौसमी रोजगार भी मुहैया कराता है। पौड़ी समेत अन्य जगहों पर युवा काफल की विक्री करते देखे जाते थे। हालांकि इस बार कोविड कफ्र्यू के चलते ऐसा नही हो पाता लेकिन काफल के पेड़ खाली-खाली हैें।

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कोविड संक्रमण के इस बार भी प्रवासी बड़ी संख्या में अपने घरों का लौटे हैं लेकिन इन्हें काफल नसीब नहीं हो रहा है। जानकारों की मानें तो पारिस्थितिकीय असंतुलन इसके लिये जिम्मेदार है। पिछले कुछ सालों से बारिश का सही अनुपात में नहीं होना और वनो मंे आग लगना इसकी प्रमुख वजह हो सकती है। वनों में मानव का बढ़ता हस्तक्षेप भी एक और वजह हो सकती है। ग्राम डुंक निवासी अमरदीप सिंह रौथाण बताते हैं कि इस बार वाकई काफल नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने बताया कि ससुराल ऐसे गांव में है जहां काफल भरपूर होते हैं और हर साल काफल ससुराली काफल भेज देते हैं लेकिन इस बार ससुरालियों ने कहा कि काफल नहीं हैं। कुछ साल पहले भी साहित्यकार वीरेंद्र पंवार ने कविता लिखी थी कि दिखणौं-चखणौं तक पैनी, ऐसू मिन काफल नि खैनि।

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