काठ का रिश्ता |चौहान ने फिर छोडे व्यंग बाण

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-तीखे व्यंग कसने वाले कवि सत्येंद्र चौहान की नई कविता लांच
-डा राजेंद्र नेगी और अशोक क्रेजी ने किया विमोचन
-कोविड के चलते बेहद सीमित रखा गया कार्यक्रम
-कोविड से उपजी संवेदनहीनता पर साधा निशाना
सिटी लाइव टुडे, ऋषिकेश


कविताओं के जरिये तीखे व्यंग बाण छोड़ने वाले साहित्यकार चौहान सोसल ने एक बार फिर निशाना साधा है। इस बार उनके निशाने पर कोविड से उपजी संवेदनहीनता रही। काठकू च बाजदू च नि बजदू के जरिये सत्येंद्र ने व्यंग करने साथ ही समाज को संदेश भी दिया है। इस कविता को टूयूब पर अपलोड किया गया है। विमोचन गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी और आवाज साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष अशोक क्रेजी ने संयुक्त रूप से किया। कोविड के नियमों के चलते विमोचन कार्यकम को बेहद सीमित रखा गया था।


इस रचना में कवि चौहान ने देश में चल रही संवेदनहीनता की वर्तमान स्थिति को उजागर किया है। काठ की तुलना मनुष्यों से की है। कोविड में लोगों के अंदर मृत्यु का भय उजागर हो गया है और लोग मानवता को भूल कर अपनों के ही मृत शरीर को लेने  छूने से परहेज कर रहे हैं।  लकड़ी का योगदान हमारे जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक रहता है जीवन भर लकड़ी मानव का साथ निभाती है। विदित हो कि सत्येंद्र चौहान पिछले 21 वर्षों से लगातार साहित्य सृजन और अपनी बोली भाषा के लिए कार्य कर रहे हैं।

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उनके द्वारा छह गढ़वाली फिल्मों की पटकथा व संवाद के लेखन का कार्य भी किया गया।  पिछले वर्ष लॉक डॉउन में 31 मार्च 2020 को फेसबुक पर अपलोड की गई सत्येंद्र सिंह चौहान की कविता बस वाली बांद ने धमाल मचाया था। इसके  अलावा गौं धै लगाणू, ढुंगा की छुई बथ और तकरीबन एक दर्जन से अधिक रचनाएं सोसल मीडिया पर छायी रहीं।

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