Haridwar News…वर्तमान और भविष्य के संकटों का हल |केंद्रीय संस्कृत विवि की अखिल भारतीय शास्त्र स्पर्धाओं का शुभारंभ|स्पर्धाओं|Click कर पढ़िये पूरी News
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस
हरिद्वार। संस्कृत हमारे वर्तमान और भविष्य के संकटों का एकमात्र हल है। संस्कृत हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल आधार है। इसलिए संस्कृतज्ञों के चिंतन का फोकस इस बात पर हो कि 2047 में विकसित भारत की तस्वीर कैसी हो।
यह बात अखिल भारतीय संस्कृत शास्त्र स्पर्धाओं के शुभारंभ अवसर पर वक्ताओं ने कही। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आयोजित किये जा रहे पंचदिवसीय इस शास्त्रोत्सव में मुख्य अतिथि पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि संस्कृत को आज वह अपेक्षित स्थान प्राप्त नहीं हो पाया है, जो उसे प्राप्त होना चाहिए था। संस्कृत, भारतीय संस्कृति और सभ्यता ने पूरे विश्व में अपना लोहा मनवाया है।

भारत की सभ्यता विश्व में सबसे पुरानी है, पतंजलि विश्वविद्यालय इसको प्रमाणों के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए तप और पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है, यह हमें सस्कृत ही सिखाती है। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि यदि संस्कृत न होती तो पतंजलि विश्वविद्यालय का यह ढांचा नहीं हो पाता। संस्कृत में दुनिया की तकनीक को आसानी से समझने की क्षमता है।

विशिष्ट अतिथि पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 विजयकुमार सीजी ने कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में ज्ञान परंपरा की बहुत चर्चा है, इसलिए हम संस्कृत के लोगों का दायित्व है कि हम भारत को विकास के मामले में शिखर पर पहुंचाने का संकल्प लें।
संगीत नाकट अकादमी की अध्यक्ष डॉ0 संध्या पुरेछा ने ज्ञान परंपरा में संस्कृत का महत्त्व रेखांकित करते हुए कहा कि संस्कृत के कारण पूरे विश्व में भारत की पहचान रही है। हमें इस विरासत को संजोना ही नहीं, और आगे भी बढ़ाना है।
भारतीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एनपी सिंह ने कहा कि संस्कृत शास्त्रों के बिना हम अंधे और अपाहिज हैं। इसलिए भारतीय शिक्षा बोर्ड ने इसे अनिवार्य विषय के रूप में स्थान दिया है। हिंदी यदि राजभाषा और राष्ट्रभाषा है तो संस्कृत संस्कृति की भाषा है। इस भाषा के माध्यम से आने वाले ज्ञान में सभी संकटों का समाधान है। यूरोप का इको दर्शन बार-बार कहता है कि पृथ्वी को बचाना है तो भारत की ज्ञान परंपरा को अपनाना होगा। श्री सिंह ने कहा कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने भारत की नई पीढ़ी को शास्त्र परंपरा की अनुपम सौगात दी है, इसलिए हम लोग इस विश्वविद्यालय के ऋणी हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 श्रीनिवास वरखेड़ी ने प्रतियोगियों को जीवन में सफलता के लिए जिज्ञासा और तप की अनिवार्यता बताते हुए कहा कि संस्कृत हमारे ज्ञान का बीज है। जब बीज सुरंिक्षत रहेगा, तभी खेती भी हो पाएगी। इसलिए आज प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है कि वह संस्कृत के प्रति गंभीर रहे। उन्होंने स्पर्धालुओं का आह्वान किया संस्कृत के क्षेत्र में सफलता के लिए त्याग, तप, संयम, धैर्य और परिश्रम जैसे गुणों को धारण करें। उन्होंने कहा कि इस शास्त्र महाकुंभ में देश के कोने-कोने से आये छात्र और विद्वान हिस्सा ले रहे हैं। ऐसे में यह आयोजन प्राच्यविद्या संस्कृत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार की दृष्टि से ही नहीं भारत की अखंडता और एकता के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि इस शास्त्रोत्सव में 34 प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा। प्रथम तीन स्थानों पर रहने वाले विजेताओं को पदक और नगद राशि पुरस्कार में दी जाएगी। इन प्रतियोगिताओं में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विभिन्न राज्यों में स्थित परिसरों तथा इस विवि से मान्यताप्राप्त आदर्श संस्कृत महाविद्यालयों के विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। प्रो0 वरखेड़ी ने कहा कि मां गंगा के तट पर स्थित हरिद्वार जैसे पवित्र तीर्थ और पतंजलि जैसे ज्ञान के प्रसिद्ध मंदिर में इस कार्यक्रम का होना स्वयं में बड़ी बात है।
इस अवसर पर पतंजलि विश्व्विद्यालय की संकाय अध्यक्ष प्रो0 साध्वी देवप्रिया, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम आदि उपस्थित थे। इससे पहले सभी अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। शुभारंभ अवसर पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलगीतों का गायन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 पवन व्यास ने किया। कार्यक्रम का संयोजन प्रो.मधुकेश्वर भट्ट कर रहे हैं।