Aiims News…बच्चों में दिखे ये लक्षण तो हो जानिये सावधान|Click कर पढ़िये पूरी खबर

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस-उत्तराखंड

बच्चों का स्वास्थ्य हमारी स्वस्थ समाज की परिकल्पना और भविष्य है। इसलिए, उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समय पर पहचानना और समयबद्ध चिकित्सकीय परामर्श और समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। एम्स,ऋषिकेश शल्य चिकित्सा विभाग की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सरिता स्याल का मानना है कि बच्चों के शरीर में किसी भी प्रकार की वृद्धि, हरे रंग की उल्टी आना, शौच के साथ खून आना या पेट में दर्द जैसे लक्षणों को अक्सर हल्के में लिया जाता है, जो कि बाल शल्य चिकित्सा संबंधी समस्याओं के संकेत हो सकते हैं। लिहाजा इस तरह के लक्षणों को अनदेखा करना बच्चों के जीवन के लिए घातक साबित हो सकता है।

चिकित्सक का अभिभावकों को सुझाव है कि बच्चों में इस तरह की शिकायत सामने आने पर उनकी समस्या की अनदेखी हरगिज नहीं करें और तत्काल बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण अनुभवी शल्य चिकित्सक से कराएं।


एम्स संस्थान की विशेषज्ञ बाल शल्य चिकित्सक डॉ. सरिता स्याल का मानना है कि इस बाबत नीचे उल्लिखित निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखकर, हम बच्चों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित कर सकते हैं और उन्हें एक स्वस्थ भविष्य प्रदान कर सकते हैं। आइए, हम सभी मिलकर इस दिशा में काम करें और अपने बच्चों को एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन दें। स्वस्थ बच्चे, स्वस्थ भविष्य!


विशेषज्ञ बाल शल्य चिकित्सक का परामर्श बिंदुवार-

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१. जागरूकता और शिक्षा: माता-पिता और शिक्षकों को इन समस्याओं के प्रति जागरूक और सचेत रहना चाहिए। बच्चों को भी इस बारे में शिक्षित करना चाहिए, ताकि वह अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरुक रहें, उन्हें समझ सकें और सही समय पर मदद मांग सकें।
२. शीघ्र पहचान और उपचार: बच्चों में दर्द या किसी प्रकार की असामान्य वृद्धि की शीघ्र पहचान और उपचार से उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हो सकता है। इससे उन्हें दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से बचाया जा सकता है।
३. विशेषज्ञों से सलाह: बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या पर विशेषज्ञ चिकित्सकों से सलाह लेना चाहिए। बाल शल्य चिकित्सक इन समस्याओं का उचित निदान और उपचार कर सकते हैं।
४. नियमित स्वास्थ्य जांच: बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच से अनेक शल्य चिकित्सा संबंधी समस्याओं का पता चल सकता है और उन्हें समय पर उपयुक्त उपचार मिल सकता है।
५. सहायता और समर्थन: अभिभावकों अथवा शिक्षकों को बच्चों को उनकी शल्य चिकित्सा संबंधी समस्याओं में सहायता और समर्थन प्रदान करना चाहिए। यह उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है।

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