BJP….क्या सच में फंस रही Haridwar Lok Sabha Seat|Click कर जानिये सटीक विश्लेषण
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस
शुरूआती दौर में भाजपा के लिये आसान लगने वाली हरिद्वार सीट को लेकर फाइट टाइट है जैसी स्थिति बनी रही है। सोशल मीडिया से लेकर न्यूज मीडिया तक इस प्रकार की खबरें तैर रही हैं कि हरिद्वार सीट पर भाजपा की जीत फंस सकती है। कम वोटिंग का मतलब क्या है इसका राजनीतिक पंडित अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं। खास बात यह है कि पूरे उत्तराखंड में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले नेताओं का परफाॅरमेंस भी अच्छा नहीं रहा है।
सिटी लाइव टुडे मीडिया हाउस की इस खबर में हरिद्वार लोकसभा सीट का जिक्र कर रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल के बाद हरिद्वार सीट पर भी फाइट टाइट है जैसी स्थिति बनी है। हालांकि फैसला 4 जून को मतगणना के बाद ही तय होगा।
अब जरा नजर डालते हैं आंकड़ों पर। हरिद्वार संसदीय सीट पर दो जिलों देहरादून व हरिद्वार की 14 विधानसभाा सीटें आती हैं। पूरी हरिद्वार संसदीय सीट पर नजर दौड़ायें तो यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या भी अच्छी-खासी है। मौटे अनुमान के अनुसार हरिद्वार सीट पर करीब 30 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों की संख्या है। दलित वोटरों की संख्या भी ठीकठाक ही है। पांच विधान सभाओं में कांग्रेसी विधायक हैं। 2019 के चुनाव में मोदी की प्रचंड लहर में डा रमेश पोखरियाल निशंक विजयी हुये थे। लेकिन इस बार मोदी मैजिक पहले के मुकाबले कम हुआ है।
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि देहरादून जिले की डोईवाला, ऋषिकेश व धर्मपुर व हरिद्वार जिले की हरिद्वार विस व रानीपुर विस भाजपा के लिये महत्वपूर्ण हैं। वोटिंग प्रतिशत को देखें तो जिन सीटों को भाजपा की मजबूत सीटें माना जाता है वहां मतदान कम हुआ है। इसकी वजहों का अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। बहुजन समाजवादी पार्टी का पहला प्रत्याशी भावना पांडेय को बनाया गया। लेकिन फिर यहां फिर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी बनाया। इससे भी राजनीतिक समीकरण बदले हैं। ऐसा सियासी पंडित मानते हैं।
राजनीतिक पंडितों की राय मानें तो यदि अधिकांश मुस्लिम वोट कांग्रेस को मिला है और ऐसा है। एससी की वोटिंग भी कांग्रेस को पड़ना बताया जा रहा है। ऐसे में क्या होगा। यह हम आप पर भी छोड़ देते हैं। इस चुनाव में देखा जाये तो बसपा का प्रचार तंत्र भी कम दिखा। यानि बसपा भी कमजोर ही नजर आ रही है।
उमेश कुमार की भूमिका का जिक्र करते हैं। उमेश कुमार के कोर वोटर मुस्लिम ही माने जाते हैं। लेकिन उमेश कुमार इन वोटरों को साधने में कितने सफल हुये हैं यह देखना भी दिलचस्प होगा। कहने का सीधा मतलब है कि मुस्लिम व दलित वोटरों का रोल कांग्रेस को मजबूती देता नजर आ रहा है।
दूसरी ओर, भाजपा का जिक्र करते हैं तो सीधी बात है कि लोकसभा चुनाव में मोदी के नाम पर वोटिंग होती है हालांकि पिछले चुनावों के मुकाबले अब मोदी मैजिक कम जरूर हुआ है। हिंदुत्व के नाम पर वोटिंग भी भाजपा के लिये संजीवनी से कम नहीं है। बहरहाल, होता क्या है इसका इंतजार करते हैं 4 जून-2024 तक।