दूल्हा राजा देहरादून वाला हो| कोठी भी चाहिये तो ही बनेगी बात| कमल उनियाल की Report
सिटी लाइव टुडे, कमल उनियाल, द्वारीखाल
मेकु ब्योली खुजे दयावा, मिथे ब्योला बणे दयावा।
मेकु ब्योली खुजे दयावा, मिथे ब्योला बणे दयावा
अब त ज्वान ह्ववेगे मी, ब्यो समान हुये ग्यो मी।
दगडया सभी ब्योला बणि, कन अभाग रह ग्यो मी श्श्
हे पन्डा जी हे बोडा जी, मेकु ब्योली खुजे दयावा।
करीब चालीस साल पहले राम रतन काला द्वारा गाया यह गढवाली गाना हास्य और मनोरंजन से प्रेरित था। लेकिन कब यही गीत जीवन की यथार्थ सच्चाई में बदल जायेगा किसी ने नही सोचा था। शादी एक पवित्र बन्धन है। जीवन साथी के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है इस आभासी दुनिया के मतलबी रिश्तो में आदमी अकेला पड जाता है तो यह पवित्र बंधन साथ खडा रहता है। लेकिन अब इस पावन रिश्तो की शहनाईयाँ बजनी में तेजी से गिरावट आ गयी है।
खासकर उत्तराखंड के पहाडी क्षेत्रों में दुल्हन मिलना और सात फैरो का सपना सपना ही बनकर रह गया है। गाँवो में बिना शादी के लडको की संख्या तेजी से बढ रही हैं सभी गाँवो में तीस से चालीस साल के दर्जनो लडके अविवाहित है कुछ घरो में तो सभी भाई अविवाहित है। पहाड के साधारण और मेहनत कश लडको को दुल्हन नहीं मिल रही है। माँ बाप बेटा की डोली सजाने के सपने लेकर रिश्तो के लिए गाँव गाँव फिर रहे हैं। कहीं अगर जन्म पत्री मिल भी रही है पर लडकी पक्ष द्वारा सरकारी नौकरी और मैदानी क्षैत्र मकान और जमीन की डिमांड से बेटे की डोली सजाने का अरमान पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
इसके कारण के पीछे मनुष्य भी जिम्मेदार है लिंगाअनुपात तेजी से घट रहा है हरियाणा के बाद उत्तराखंड में बेटियों की संख्या घट रही है। हमारे संवाददाता को एक ज्योतिषचार्य ने बताया उनके पास हजारो जन्मपत्री आती हैं लेकिन सरकारी नौकरी शहरो की और जमीन की माँग से रिश्ता होना नामुमकिन हो गया है। उन्होने बताया की अब गाँव की पढी लिखी लडकी गोबर निकालाना, जंगलो से घास लाना, जैसे कठिन दिनचर्या ऐसी ज़िन्दगी नहीं चुनना चाहती इसलिए वे अब मैदानी क्षैत्रो और अच्छी नौकरी वाले रिश्तो को प्राथमिकता दे रही है।