फिर लगी ” खुद ” आयी मायके की याद | गौं-गुठ्यार पहुंची श्रुति लखेड़ा ने दिया खास ” रैबार “| Click कर पढ़िये पूरी खबर

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस


जनता के मुद्दों को लेकर मुखर होती और सियासी धार भी पैनी करती श्रुति लखेड़ा के मन का रैबार उनके मायके के गौं-गुठ्यार तक पहुंचा है। इससे पहले भी मायके में यह रैबार पहुंचा है लेकिन इस बार यह रैबार ज्यादा असरदार कहा जा सकता है। असरदार क्यों, इसका जवाब पूरी खबर पढ़ते-पढ़ते मिल ही जायेगा।

लालढांग की बेटी श्रुति लखेड़ा का मायका यमकेश्वर क्षेत्र का गांव बनचूरी है। अब बेटी मायके तो जाती ही रहती है। मायके जाना कोई नयी बात नहीं है। श्रुति लखेड़ा के प्रोफाइल पर नजर डालें तो श्रुति लखेड़ा रैबार नामक संस्था को संचालित करती हैं। लालढांग क्षेत्र में श्रुति ने महिलाओं के लिये सराहनीय कार्य किये हैं। यहां बोक्सा जन-जाति समेत अन्य लोगों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने की मुहिम रंग लाती दिख रही है। समाज में सक्रियता से श्रुति को अच्छी-खासी लोकप्रियता भी हासिल है।
खास बात यह है कि श्रुति की सियासत में दखल भी है। जनता की समसयाओं को लेकर श्रुति प्रखरता के साथ मुखर भी होती रही हैं। पहाड़ प्रेम कई बार छलका है। पहाड़ की वेदना का अहसास बखूबी है और इस वेदना को दूर करने की भी ठानी है।

समय-समय पर श्रुति लखेड़ा पहाड़ की नारी को लेेकर बड़ी बात करती आ रही है। पहाड़ को लेकर उनके मन में प्रेम भी और श्रुति कहती भी आ रही है कि पहाड़ के लिये कुछ करने का मन है।


अब एक बार फिर श्रुति लखेड़ा को मायके की याद आयी और याद आयी फिर चल पड़ी मायका। श्रुति लखेड़ा यमकेश्वर क्षेत्र का गांव बनचूरी मायके पहुंची तो यादें कम होने के बजाय और भी ज्यादा ताजा हो गयीं।

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तीन-चार दिन मायके में गुजारे और कई गांव का भ्रमण किया। बेटी आयी है तो मायके वालों से दिल खोलकर दुलार किया। इस बीच श्रुति ने तमाम ग्रामीणों को स्वरोजगार अपनाने को प्रेरित किया। अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने की भी अपील की। श्रुति ने खेड़ा, जय कंडी, बनचूरी खोबरा आदि गांवों के गौं-गुठ्यार का भ्रमण किया। इस दौरान श्रुति ने आश्वस्त किया कि स्वरोजगार के लिये ग्रामीणों की हरसंभव सहायता की जायेगी। रैबार नामक संस्था के जरिये यमकेश्वर समेत पूरे पहाड़ में स्वरोजगार के अवसर सृजित किये जायेंगे। उन्होंने कहा कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिये स्वयं भी पहल करनी होगी।

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