पौड़ी की राम लीला| यूनेस्को ने माना कि “कुछ तो खास है ” | साभार-संस्कृतिकर्मी मनोज रावत अंजुल

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस-साभार-संस्कृतिकर्मी मनोज रावत अंजुल


संस्कृति नगरी पौड़ी की सांस्कृतिक धरोहरों की थाह लेना आसान नहीं है। श्रीराम लीला मंचन भी ऐसी धरोहर है जिसकी धमक व चमक यूनेस्को तक महसूहस की गयी। यहां की ऐतिहासिक श्रीराम लीला मंचन का सफर एक सदी के कालखंड को चीरता हुआ 122वें साल में प्रवेश कर गया है। इन दिनों पौड़ी में श्रीराम लीला मंचन चल रहा है जिसके साक्षी बन रहे है श्री रामभक्त।

संस्कृतिकर्मी व साहित्यकार मनोज रावत अंजुल बताते हैं कि पारसी थियेटर शैली पर आधारित यह रामलीला यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के लिए भी नामित की गई थी जिसका आठ दिवसीय मंचन 2007 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली में किया गया। अपनी अनेक विशिष्टताआंे के कारण पौड़ी रामलीला आज भी मनोरंजन के सैकड़ों साधनों के बावजूद भी जनमानस में अत्यंत लोकप्रिय है। विशुद्ध शास्त्रीय संगीत पर आधारित विभिन्न राग- रागिनियों का सम्मिश्रण इस रामलीला को अत्यंत कर्णप्रिय बनाता है।

संस्कृतिकर्मी व साहित्यकार मनोज रावत अंजुल

मनोज रावत अंजुल आगे बताते हैं कि आधुनिक तकनीक पर आधारित दृश्य संयोजन अपने आप में अनूठा और आकर्षक है।
सबसे बड़ी विशिष्टता इस रामलीला की यह है कि संगीत की तीनों विधाओं गीत, नृत्य, वादन साथ ही अभिनय के लिए यह कलाकार के लिए बहुत बड़ा एक्स्पोज़र है। यानी यह मंच प्रत्येक कलाकार के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान करता है। समय के साथ-साथ आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल भी रामलीला मंचन को उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध हुई है। इसी प्रकार से रूप सज्जा और वस्त्र विन्यास जैसा पक्ष भी राम के युग का भान कराने में सक्षम है। यानी जो कल्पना हम रामायण के पात्रों की मन में करते हैं वह मंच पर जीवंत रूप में दिखे।


आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय किसी के पास भी नहीं लिहाजा मंचन को सफल बनाने में चुनौतियां भी बहुत सारी आड़े आती है, मगर हमारे सुद्धि दर्शक व राम भक्त प्रेमी जनता हमारा मनोबल बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुई है। आप सबका प्यार और स्नेह हमेशा हमें मिलता रहा है और भविष्य में भी अनवरत मिलता ही रहेगा।

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