kotdwar| धीरेंद्र का ” त्रिकोण ” ही तय करेगा नेगी और ऋतु का राजयोग| अजय रावत, वरिष्ठ पत्रकार
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस-अजय रावत, वरिष्ठ पत्रकार
चुनाव घोषणा के समय कांग्रेस के लिए सबसे साफ़ नज़र आ रही कोटद्वार सीट मतदान की तिथि तक सबसे बड़े सियासी अंकगणित के धुंध में घिरी नज़र आई। रोचक तथ्य यह कि यहां भाजपा के बागी ने केवल भाजपा नहीं बल्कि कांग्रेस को भी नाकों चने चबाने को विवश किया।
यहां से निवर्तमान विधायक डॉ हरक सिंह रावत ने 2017 के चुनावों में 39589 मत लेकर कोटद्वार की सियासत के बड़े दरख़्त सुरेंद्र नेगी को 11048 के बड़े अंतर से झुका डाला था। उस चुनाव में पड़े लगभग 70 हज़ार मतों को इन दोनों ने ही आपस में बांटा था, बसपा की रेणु अग्रवाल महज़ 764 के आंकड़े को ही छू पाई थीं।
इस मर्तबा यहां करीब 76 हज़ार मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया, लेकिन मुख्य मुकाबला 2 नहीं 3 प्रत्याशियों के दरमियान हुआ है। भाजपा के मजबूत स्तम्भ व नगर निगम चुनाव में साढ़े तेईस हज़ार मत प्राप्त करने वाली विभा चौहान के पति धीरेंद्र चौहान बतौर भाजपा के बागी प्रत्याशी मैदान में थे। इसमें दो राय नहीं कि प्रचार के शुरुआती दिनों में धीरेंद्र ने पूरी शिद्दत से अभियान चलाया किन्तु आखिरी क्षणों में उनके अभियान की मारक क्षमता अपेक्षाकृत रूप से कम आक्रामक नज़र आई।
प्रचार के आखिरी दिवस योगी आदित्यनाथ की बड़ी जनसभा का असर भी यहां देखने को मिला, यदि यह असर वोट में तब्दील हुआ होगा तो 10 मार्च को ईवीएम खुलने पर भाजपा प्रत्याशी ऋतु के अंकगणित में पूर्व के मुकाबले काफ़ी सुधार देखने को मिल सकता है।
बहरहाल, इस सीट पर जब ईवीएम खुलेंगी तो मतों का तीनों प्रत्याशियों के पक्ष में लगभग समांतर गिना जाना तय है।
धीरेंद्र भाजपा के साथ कांग्रेस को कितना आघात पंहुचा गए यही समीकरण यहां तय करेगा कि जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा। यहां इस मर्तबा 36220 पुरुषों के मुकाबले 39724 महिलाओं ने मतोपियोग किया है। आम धारणा के मुताबिक मातृ शक्ति पर मोदी मैजिक का असर अभी बरकरार था, ऐसे में शुरुआती दिनों में मुकाबले से बाहर नज़र आ रही भाजपा भी यहां मुख्य मुकाबले पर पंहुच जाए तो आश्चर्य न होगा। हालांकि यदि बसपा व आप ने कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक पर सेंध न मारी होगी तो सुरेंद्र नेगी के अंकगणित में अव्वल निकलने की संभावनाएं अधिक हैं। वहीं मोदी मैजिक, योगी की जनसभा और महिला प्रत्याशी का एडवांटेज मिला होगा तो ऋतु खण्डूरी तथाकथित तौर पर अपने पिता की हार का बदला लेने की दहलीज़ पर होंगीं, वहीं यदि नगर निगम के चुनावी गणित के फार्मूले को बुनियाद में रखा जाए तो यहां से कोई अप्रत्याशित परिणाम भी निकल आये तो हैरानी न होगी।