मकरैंण|” गिंदी” भी खेली और कोविड नियमों का पालन भी हुआ| द्वारीखाल से जयमल चंद्रा की रिपोर्ट

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सिटी लाइव टुडे, जयमल चंद्रा, द्वारीखाल


ऐतिहासिक एवं धार्मिक गेंद मेला इस बार कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुये पूरी आस्था व विश्वास के साथ मनाया गया। लिहाजा, सांकेतिक रूप् से गिंदी खेली गयी। जिसमें दोनों पक्षों की ओर से दो-दो लोगों ने भाग लिया।


मकर सक्रांति के दिन यमकेश्वर के द्वारीखाल, दुगड्डा व यमकेश्वर ब्लॉकों के विभिन्न स्थानों थलनदी,कस्याळी,डाडामंडी,कटघर,देवीखेत, कल्सी आदि में ’गिन्दी’ का मेला बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।इस दिन परम्परा अनुसार दो पक्षों के मध्य गेंद खेली जाती है।मुख्यतः यह दो पट्टियों के बीच का मुकाबला होता है।एक पट्टी में कई गांव आते है।खिलाड़ियों की संख्या निश्चित नही होती।नियम के अनुसार एक बड़ी सी गेंद होती है,जो स्थानीय जानकर द्वारा बड़ी दक्षता के साथ बनाई जाती है।इस गेंद को गेंद स्थल के बीचोबीच ले जाया जाता है,वहीं से खेल आरम्भ होता है। गेंद केवल बाहुबल और हाथो से ही खेली जाती है ।

सभी अपने-अपने गोल पोस्ट की ओर गेंद को ले जाने की जिद्दोजहद करते हैं। जो भी गोल पोस्ट तक गेंद ले जाने में सफल होंते हैं उनको विजेता मान लिया जाता है। मेला स्थल में बच्चों के खिलौने,महिलाओं के श्रृंगार व सभी की आवश्यकता के सामान से दुकान सजती है। खूब खरीददारी होती है।’गिन्दी’ के मेले का हिस्सा बनने के लिए यहां के प्रवासी अपने-अपने गांव आते हैं।बच्चे,महिलाएं,पुरुष,बुजर्ग सभी नये-नये कपड़े पहनते हैं व सज-धज कर मेले में जाते हैं और खूब मौज मस्ती करते हैं, तथा इस अदभुत खेल का आंनद उठाते हैं।जलेबिया,पैठा,सेल आदि मिठाइयो का लुफ्त उठाया जाता है,छोले-भटूरे,समोसे आदि ब्यजंनो के स्टॉलों से भी मेले की रौनक बढ़ती है।

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लेकिन पिछले दो सालों से करोना के चलते इस पारम्परिक मेले को औपचारिक रूप में ही मनाया जा रहा है। हमारी मीडिया टीम देवीखेत व कल्सी के मेला स्थल पहुंची । उन्होनें बताया कि दोनों जगह औपचारिक ’गिन्दी’खेली गई। कोविद-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए अपनी सांस्कृतिक धरोहर की परम्परा को निभाते हुए, विधि विधान से पूजा-अर्चना कर परम्परा निभाई गयी।दोनों पक्षों के दो-दो खिलाड़ियों द्वारा औपचारिक ’गिन्दी’ खेली गयी।

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