उतिंडा| गौरवशाली इतिहास लेकिन वर्तमान पर पलायन की मार|जयमल चंद्रा|सुरेश चंद्र बलूनी
सिटी लाइव टुडे, जयमल चंद्रा| सुरेश चंद्र बलूनी
पहाड़ के गांव अपने आप में खास, ऐतिहासिक व समृद्धशाली हैं। लोक संस्कृति के संवाहक ये गांव अब वीरांन होने लगे हैं। संसाधनों व सुविधाओं के अभाव में यहां के वैभवशाली गांवों पर पलायन की मार पड़ने लगी है। पौड़ी जनपद के द्वारीखाल ब्लाक का उतिंडा गांव एक ऐसा ही गांव है जिसका समृद्धिशाली व गौरवशाली इतिहास को जानने से सीना चैड़ा होता है लेकिन अफसोस अब उतिंडा गांव अपनी पुरानी रंगत खोता जा रहा है। सरकारी मशीनरी की नजर इस गांव में पड़े तो यह गांव जनपद का ही नहीं बल्कि प्रदेश का खास गांव बन सकता है। काश कि ऐसा हो।
,पंडित सुरेश चंद्र बलूनी जी । जो पंडिताई भी करते है व गढ़वाल की संस्कृति को शोशल मीडिया के द्वारा जन-जन तक पहुँचा रहे हैं। उनका फेसबुक पेज गढ़वाल की संस्क़ृति के माध्यम से आम लोगो तक पहुच रहा है।यहाँ आप गढ़वाल की संस्कृति का बखूबी पचार में लगे है।
पौड़ी जनपद के द्वारीखाल ब्लाक के लंगूर वल्ला पट्टी का गांव है उतिंडा। खेती की जमीन उपजाऊ एवं समतल,लंबे चैड़े सीढ़ीदार खेत हैं।
लगभग 10 साल पहले तक यहां पर दलहन,तिलहन,गेहूं,धान, कोदा,झंगोरा, कौणी, मर्सू (चैलाई), उड़द, तोर,गहथ,राजमा,मसूर, आदि प्रचुर मात्रा में होता था,सब्जियों में आलू,प्याज,लौकी, तोरी, चचिंडा,करेला,परमल आदि,फलों मेंकेला,अमरूद,माल्टा,संतरा, गलगला,अखरोट, अनार, दाडिमी,चकोतरा आदि की अच्छी उपज होती थी,लेकिन वर्तमान में पलायन के कारण वे लंगूर ,सुअर,बंदर, बारहसिगा आदि फसल को तहस नहस कर देते हैं,इसलिए अब खेत बंजर होने लगे हैं।
जंगली जानवरों के कारण कारण खेत बंजर हो रहे हैं,जिसके परिणाम स्वरूप लैंटीना की झाड़ी खेतों में फ़ैलने लगी है,इससे घास नहीं हो रहा है,पशुओं के लिए चारा उपलब्ध न होने के कारण पशुपालन पर भी बुरा असर पड़ रहा है,यदि कोई दूध का व्यवसाय करना भी चाहता है तो मार्केटिंग की व्यवस्था नहीं है,वर्तमान में उतिंडा बेरोजगारी की मार झेल रहा है।
उतिंडा में पूरे क्षेत्र की सरकारी सस्ते गले की बहुत पुरानी दुकान थी, स्वर्गीय रामचंद्र बलूनी जो लालाजी के नाम से विख्यात थे,कई वर्षों तक ग्रेन डीलर रहे। स्व विद्यादत्त बलूनी लंगूर, ढांगू, मनियारस्यूं में एक मात्र डॉक्टर थे,दूर दूर तक मरीजों का इलाज करने के लिए जाते थे,1996 में लगभग 90 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई।
स्व श्रीकृष्ण बलूनी एवं स्वव श्री ईश्वरीदत्त बलूनी आयुर्वेदिक नाड़ी वैद्य थे। स्व पंछीदास ढोलसागर एवम् साबर विद्या के प्रकाण्ड विद्वान थे।
स्व श्री कुत्तलदास गाय भैंस बकरी के माहिर व्यापारी एवम् पहलवान थे। भैंसा, बैल, सांड को उनकी टांग पकड़कर अपने हाथों से अपने सिर के ऊपर तक उठा देते थे,दो भैंसों की लड़ाई उनके सींगों में ज्यूड़ा फंसाकर छुड़ा देते थे।
सर्वोदय नेता स्वर्गीय मान सिंह रावत के सहपाठी श्री भगत सिंह रावत जी 1953 में कमीशन पास करके भारतीय रेल में स्टेशन मास्टर बने और 1991 में चीफ कंट्रोलर के पद से सेवा निवृत्त हुए,वर्तमान में अपने परिवार के साथ कोटद्वार में रहते हैं।
उतिंडा में आजादी से पहले लोवर प्राइमरी स्कूल थी,जो कक्षा 2 तक होती थी। 1946 में प्राइमरी स्कूल बनी। 1948 में स्कूल की बिलिं्डग बनी। 2005 में पुरानी बिलिं्डग को तोड़कर नई बिलिं्डग बनी। इस समय 1 से 8 तक की स्कूल चल रही है