आशा कार्यकर्ताओं की पीड़ा को गम्भीरता से ले उत्तराखंड सरकार | डा.राणा | पढ़िये पूरी खबर
CITY LIVE TODAY. MEDIA HOUSE
उत्तराखंड नवनिर्माण अभियान के संयोजक एवं वरिष्ठ समाजसेवी डा. महेन्द्र राणा ने आज प्रेस को एक बयान जारी करते हुए उत्तराखंड सरकार से मांग की है कि सरकार को प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में जन स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण एवं संवेदंशील ज़िम्मेदारी निभा रहीं आशा कार्यकर्ताओं की मांगो पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए । हमारे प्रदेश की आशा बहिनें विगत कई महीनों से प्रदेश सरकार के उनके प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये से क्षुब्ध होकर आंदोलनरत हैं ।
पूरे उत्तराखंड में 9 हजार से अधिक आशा कार्यकत्री यूनियन अपनी मांगो को लेकर 23 जुलाई से प्रदेश भर में आंदोलनरत है, 23 जुलाई को प्रदेश के सभी ब्लॉक मुख्यालयों पर प्रदर्शन करने के बाद 30 जुलाई को सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन आयोजित किये गये, सरकार द्वारा आशाओ की मांगों की अनदेखी करने पर 2 अगस्त से सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर आशा कार्यकत्रियां लगातार धरने पर बैठी हैं। मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य सचिव तथा स्वास्थ्य महानिदेशक के साथ कई दौर की वार्ता यूनियन नेताओं की हो चुकी है, परंतु इन सभी वार्ताओं का परिणाम बेनतीजा रहा । अब भी स्वास्थ्य मंत्री ने आशाओं को केवल मौखिक आश्वासन ही दिया है ,सरकार कोई भी लिखित शासनादेश देने को तैयार नही है ।
डा. महेन्द्र राणा का कहना है कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य मातृ शिशु मृत्यु दर में कमी लाना था, जिस में आशा का कार्य लोगों को जागरूक करना और जच्चा बच्चा की देखभाल के साथ यह सुनिश्चित करना की प्रसव घर में न होकर अस्पताल में हो, ताकि जच्चा और बच्चा दोनों को जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें, सरकार का यह प्रयास सफल रहा परन्तु आज आशाओं के ऊपर जिम्मेदारी बढ़ा दी गई है, यदि कोरोना की बात करें तो आशाओं ने फ्रंट वॉरियर की तरह कार्य किया, जबकी आशाओं के पास सुरक्षा उपकरणों की कमी भी थी, जिस कारण कोरोना से कुछ आशाओं की मृत्यु भी हुई ।
डा. राणा आगे कहते हैं कि एक आशा नौ महीने तक गर्भवती महिला की देखभाल करती है उसके बाद सरकारी अस्पताल में प्रसव होने पर उसको मात्र 600 रुपये मिलते हैं, लेकिन यदि जच्चा के घर वाले उस का प्रसव प्राइवेट अस्पताल में कराते हैं तो ये प्रोत्साहन राशि भी उसको नहीं मिल पाती। इसके आलावा स्वास्थ्य विभाग के बहुत से कामों का जिम्मा आशा को उठाना पड़ता है, गावों के स्वास्थ्य से सम्बंधित सभी मामलों की जिम्मेदारी आशा पर ही होती हैं ।उन्होंने सरकार से मांग की है कि आशाओं को प्रतिमाह कम से कम इतना मानदेय तो दिया जाये जिससे एक आशा अपने परिवार का सही प्रकार से निर्वहन कर सके।