मातंग व शोभन योग के शुभ संयोग में ‘रक्षाबंधन ‘| राखी बांधने का वक्त प्रातः 6ः 15 से | प्रस्तुति-ज्योतिषी पंकज पैन्यूली

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सिटी लाइव टुडे, प्रस्तुति- ‍आचार्य पंकज पैन्यूली(ज्योतिष एवं आध्यात्मिक गुरु)संस्थापक भारतीय प्राच्य विद्या पुनुरुत्थान संस्थान ढालवाला। कार्यालय-लालजी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स मुनीरका, नई दिल्ली। शाखा कार्यालय-बहुगुणा मार्ग पैन्यूली भवन ढालवाला ऋषिकेश।सम्पर्क सूत्र-9818374801,8595893001


भाई-बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन करीब आ चुका है। 22 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस बार अत्यंत शुभ संयोग में रक्षाबंधन का पर्व आ रहा है। इस दिन मातंग व शोभन योग बन रहा है जो कि इस पर्व और भी खास बना रहे हैं।


.रक्षा बन्धन मूलतः भाई बहिन का त्योहार है। लेकिन कुछ प्रान्तों में जैसे-उत्तराखंड आदि प्रदेशों में परम्परानुसार इस दिन कुल पुरोहित यजमान के घर जाकर उन्हें जनेऊ अर्पित भी करते हैं,और मंत्रोच्चार के साथ यजमान की सुख समृद्धि की कामना के लिए,यजमान परिवार की कलाई में ‘रक्षा सूत्र ‘बांधते हैं और यजमान कुलपुरोहित का आशीर्वाद लेकर उन्हें श्रद्धानुसार उपहार और दक्षिणा भेंट करते हैं।। .गुरुकुल की परम्परानुसर आज के दिन शिष्य गुरु को और गुरु शिष्य को रक्षा सूत्र बांधते हैं।। .प्रकृति संरक्षण की भावना से भी आज के दिन कुछ लोग या कुछ संगठन के लोग वृक्षों को रखी बांधते हैं।।

.रक्षा बंधन का अर्थ क्या है?

‘रक्षा‘का मतलब सुरक्षा और ‘बन्धन‘का मतलब बाँधना। अर्थात बहन भाई के हाथ में राखी का सूत्र बाँधकर सुरक्षा की जवाब देही सुनिश्चित करती है। रक्षा बन्धन की विधि-बहिनों को थाली में राखी के साथ रौली अथवा हल्दी, साबुत चावल सम्भव हो तो फूल और दीपक रखना चाहिए। फिर भाई को किसी आसान,कुर्सी आदि में बिठाकर सर्वप्रथम गणेश,विष्णु,कृष्ण अथवा जिस किसी देवी देवता के प्रति आपकी श्रद्धा हो का स्मरण करें। फिर सर्व प्रथम भाई को टीका करें,टीके के ऊपर चावल लगायें।और फिर चावल फूल सर के ऊपर रखें। और फिर दाहिनी कलाई में राखी बांधे।।
. .रक्षाबंधन का प्रारम्भ कब से माना जाता है?

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ऐसी मान्यता है,की राजा बलि ने एक बार भगवान को भक्ति के बल पर जीत लिया और यह वरदान मांगा कि अब आप मेरे ही राज्य में रहें,भगवान मान गये और उसी के राज्य में रहने लगे। वापस न आने से लक्ष्मी जी दुःखी रहने लगी।तब एक बार नारद जी के परामर्श पर लक्ष्मी जी पाताल लोक गई और बलि के हाथ में रखी बांधकर उसे भाई बनाया और फिर फिर निवेदन पर विष्णु जी को वापस लेकर आयी। तब से ही रक्षा बन्धन की परम्परा चल रही

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