असवालस्यूं | डुंक में अब नहीं सुनायी देता ‘ खंडबाजे’ | पढ़िये पूरी खबर
डुंक गांव के साथ जुड़ी है बादी मेला आयोजित होने की परंपरा
बादी लांग खेलते हुये महादेव का नाम लेकर बोलता था खंडबाजे
शोधकर्ता मनोज ईष्टवाल ने की साझा की यह उपयोगी जानकारी
सिटी लाइव टुडे, कल्जीखाल
पौड़ी जनपद का ऐतिहासिक गांव डुंक का खंडबाजे सालों पहले ही गायब हो चुका है। मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित इस खंडबाजे की अपनी अलग ही साहसिक व विशिष्ट पहचान थी। कहते हैं कि खंडबाजे में करतब दिखाने पर गलती होने की सजा सीधे मौत थी। हालांकि, मौत की सजा कभी दी गयी हो इसके कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं।
जनपद पौड़ी के कल्जीखाल विकासखंड के अंतर्गत असवालस्यूं पट्ी आती है। असवालस्यूं पट्टी में कई गांव आते हैं और इन्हीं में एक गांव है डुंक। डुंक गांव अपने आप में विशिष्ट है। खास बात यह है कि पिछले कुछ समय से गांव में ईष्ट देवी के पूजन में पशुबलि समाप्त कर दी गयी है। स्वच्छता के मामले में भी डुंक पूरे इक्कीस है। इसके लिये इस गांव को निर्मल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
इतिहास के आइने में देखें तो डुंक के साथ ऐतिहासिक तथ्य व परंपरायें जुड़ी हुयी हैं। इस गांव में कभी लांग खेली जाती थी। गढ़वाल की परंपराओं व रीति-रिवाजों के शोधकर्ता मनोज ईष्टवाल बताते हैं कि डुंक गांव में कभी बादी मेला लगता था। इसमें बादी समाज के लोग लांग खेलते महादेव का नाम लेकर खंडबाजे बोलते थे। मनोज ईष्टवाल के अनुसार गांव की उंची सरहद से गांव के क्वाठा किले तक काठ की कठघोडी में फिसलते हुये आते थे। यदि वह बीच में गिर गया तो उसे मार दिया जाता था। ऐसा कभी हुआ होगा इस बात के कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते हैं। लेकिन धीरे-धीरे बादी मेला भी समाप्त हो गया है।
बादी मेला के प्रत्यक्षदर्शी शिक्षाविद् दशरथ सिंह रौथाण बताते हैं कि गांव में किसी प्रकार की बीमारी का संक्रमण न हो, फसल बारिश समय पर हो और अन्न-धन्न की बरकत बनी रहे, इसीलिये बादी मेला खेला जाता था।
बादी मेले के प्रत्यक्षदर्शी कुलदीप सिंह रौथाण बताते हैं कि उन्होंने भी डुंक में बादी मेला देखा है लेकिन सालों पहले की बात है अब बादी मेला नहीं होता है।
अमरदीप सिंह रौथाण बताते हैं कि उन्होंने कभी भी बादी मेला नहीं देखा है। बादी मेले के बारे में सुना जरूर है।