Garhwal News… ” डांडी कांठ्यू-कू-आलू ” की थिचैंणी के महानगरों में ” चटकारे “| जगमोहन डांगी की Report

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सिटी लाइव टुडे, जगमोहन डांगी, पौड़ी गढ़वाल


आलू की थिचैंणी और जख्या का तड़का आहा-आहा- आहा, आ गया ना मुंह मेें पानी। अच्छी बात यह है कि यह थिचैंणी इस बार शहरों की थाली में पहुंची गयी है और प्रवासी लोग इसका खूब जायका ले रहे हैं। हमारे संवाददाता जगमोहन डांगी ने यह खास रिपोर्ट पेश की है।

पहाड़ में कास्तकारों की आलू की खेती भी आजीविका का एक मुख्य साधन हैं। क्योंकि आलू की फसल मात्रा तीन माह में तैयार हो जाती है। उसके बाद प्याज की खेती की जाती है। जिस समय काश्तकार खेतों में आलू के बीच की बुवाई करते हैं। उस समय बाजार में आलू का बीज के दाम कम से कम 20 या 25 रुपया प्रति किलो होता है। काश्तकार को महंगे दामों पर बीज खरीद करते हैं। उद्यान विभाग में समय पर आलू के बीज उपलब्ध नहीं होता फिर गत कई वर्षों से आलू की खेती पर कोई अज्ञात बीमारी लग रही हैं।

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जिस कारण आलू की खेती पूरी तरह चैपट हो रही थी। और आलू की खेती करने वाले कास्तकारों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था जिस कारण अज्ञात बीमारी के भय से काश्तकारों ने आलू की बुवाई बहुत कम कर दी लेकिन इस बार थोड़ा बहुत जो भी बुवाई की थी उसकी अच्छी पैदावार हुई और इन दिनों घर गांवों में मेहमानों को थाली में लाल पहाड़ी आलू की थिंचोणी परोसा जा रहा है। हालांकि कृषि एवं उद्यान विभाग इस बीमारी से अनजान हैं। विधानसभा सत्र चल रहा है कोई माननीय जनप्रतिनिधि काश्तकारों की यह जटिल समस्या उठाएगा हमारे क्षेत्र में जिन-जिन गांवो में आलू-प्याज की नगदी खेती होती है। वह इस प्रकार है। थनुल,कुनकली-किसमोलिया, सैण, भेटूली,पलासू,जखनोली,उजेडगांव,भटकोटी,अलासू, धारी,साकनी छोटी आदि गांव में भारी मात्रा में आलू की खेती होती है।

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