ऋतुराज….प्रकृति करती है श्रृंगार व मन में बहार| लोक जीवन में वसंत पंचमी| कमल उनियाल की Report

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सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस-कमल उनियाल, द्वारीखाल

मेरा डांडी कांठन्यू का मुलुक जैल्यु, बंसत ऋतु मा जेई।

मेरा डांडी कांठन्यू का मुलुकु जैल्यु, बंसत ऋतु मा जेई,
हेरा बणु मा बुराँश का फूल जब बणाग लगाण होला,,
भींटा पाखो थे फ्युँली का फूल पिंगला रंग मा रंगाणा होला,,
लय्या पय्यां गवीर्याल फूल न होली
धरती संजि देखि ऐई।

लोक गायक व लोक नायक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी द्वारा बंसत ऋतु के सौन्दर्य पर गाया यह गीत मानव संवेदनाओ को झकझोर कर देती है। उत्तराखंड उत्सवो का प्रदेश है बंसत पंचमी स वसंतोत्सव शुरू हो जाता है। नवपल्लवित सृष्टि में पेड, पौधौ में नया यौवन छा जाता है। चारो और गवीराल, फ्यूँली, सरसो के फूल से लदलद धरती मानो सौन्दर्य की अराधना कर रही हो। सृष्टि श्रँगार से सज जाती है। कुदरत से आयी हरियाली से पानी, मिट्टी, वायु, फल, फूल, फसल पकने से मन आनन्दित हो जाता है।
उत्तराखंड में बंसत पंचमी से वैशाखी पर्व तक प्रकृति मन को रिझाती है। प्रकृति कामदेव जैसा सौन्दर्य और उल्लास से भर देती है। बंसत ऋतु को ऋतुराज भी कहा जाता है। बंसत पंचमी के दिन लोग गंगा नहाकर पुण्य कमाते है। बच्चे फूल तोडते है प्रकृति में बहार आ जाती है। थडिया चैंफाला और बसंत गीत गुनगुनाये जाते हैं।

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सेरा की मिंडोली ने पैंया जामी, दिवता की सतन ने डाली पैंया जामी।
फूलो कविलास रेमासी को फूल, फूलो कविलास के मैना फुलालों।
प्रकृति से जूडे इन गीतो को बंसत
आगमन पर खुशी से गाये जाते हैं।
बंसत आगमन की खुशी में तरह तरह के पकवान बनाये जाते
है फिर रात्रि में थडिया, चैंफला नृत्य गीतों के गायन के सुरीले स्वरो सेपहाडों और घाटियो को गुजंयमान हो जाती हैं। बंसत ऋतु
के आगमन से आम की बौर, जौ और सरसों की लहलहाती फसलो में, फ्यूंली के फूलो में, कोयल की मधुर आवाज, घाटियों और पहाडो में बसने वाले छोटे छोटे गाँवो से उठने वाली गीतो की स्वरलहरियां और कर्णप्रिय मिठास से देवता भी मंत्र मुग्ध हो जाते हैं।

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