द्वारीखाल बुलेटिन| 65 साल की उम्र में बंजर भूमि पर लहलहा दी ” हरियाली “| कमल उनियाल की रिपोर्ट

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सिटी लाइव टुडे, कमल उनियाल-द्वारीखाल


यह ठीक है कि कुछ वर्ष पहले बोरियों के हिसाब से अनाज पैदा करने वाला किसान आज महज दस बीस किलो अनाज के लिए सरकारी राशन की दुकान पर खड़ा मिलता है। पहाड में कृषि सिमट के रह गई है लेकिन कुछ लोग जुगुनू की तरह कृषि का अस्तित्व को जीवत रखने के लिए प्रयासरत है। 65 साल के शशिभूषण भी ऐसे ही बिरले हैं जिन्होंने बंजर भूमि में हरियाली लहलहा दी है और गांवों से मुंह मोड़ रहे लोगों के लिये नजीर बने हैं।


अपने उत्तराखंड के पौड़ी के द्वारीखाल के गाँव गहली के 65 वर्षीय शशिभूषण कुकरेती उम्र के इस पडाव मे भी बंजर खेती को आबाद कर कायाकल्प कर रहे है। आज उनके पास सात मछली तालाब, एक पोलिया हाउस एक मुर्गी फार्म तीन बीघे में नगदी फसल तथा दो बीघे में बागवानी कर रहे है।


मछली ग्रास कार्प कोमन कारप, रोहू पंगास जेसी विभिन्न प्रजाति की मछलियाँ तालाब में अठखेलियाँ करती है पोलिया हाउस पत्ता गोभी मेथी मिर्च खीरा तो मुर्गी फार्म में सौ से ज्यादा मुर्गी से अंडे का रोजगार होता है। उन्होंने अभी एक बीघा में पहाड़ी मूला तीन बीघा में सरसांे बो रखी हैं। इनकी माँग शहर तक होती है शशिभूषण बागवानी में भी पीछे नहीं है उन्होंने ने तीन बीघे में हजारी केले इलायची, मौसमी माल्टा, संतरा अमरुद अखरोट चंदन के पेड की शीतलता मनमोहित कर देती हैं।

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सिटी लाइव टुडे से बात करते हुए शशिभूषण ने बताया उनके गाँव के साहित्यकार डाक्टर शिवप्रसाद डबराल जिन्होंने अनेक कालजयी रचनाये लिखी उन्हीं को वे अपना आदर्श मानते हैं उन्हीं की रचना संघर्ष संगीत में लिखा था काम करते रहो बैठो मत दुनिया आप अपने आप ढूँढेगी। ईसी से प्रेरित होकर में अपनी माटी से जुड़ा हूं।

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