सवा करोड़ लोग, कर्ज़ा 75 हज़ार करोड़, तो क्यों न हो उत्तराखंड “उतणदण्ड|वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत की रिपोर्ट

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सिटी लाइव टुडे, वरिष्ठ पत्रकार अजय रावत

यावत जीवेत सुखम जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत” यानी कि कर्ज़ लेकर घी पीते हुए आनंद प्राप्त करें। 20 साल के उत्तराखण्ड पर भी यह युक्ति सटीक बैठती है । कर्ज़ के इस घी का आनंद नेता, अधिकारी, कर्मचारी-शिक्षक, एनजीओ, बड़े ठेकेदार व दलालों तक सीमित है, लेकिन आम किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी, कारोबारी इस उधार के घी के आनंद से वंचित हैं उल्टे उनके सर पर भी 65 हज़ार का कर्ज़ा चढ़ आया है।


वर्ष 2000 में पैदा हुए 3 राज्यों, झारखंड, छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड के संदर्भ में जारी आर्थिक रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति कर्जे पर नज़र डाली जाए तो यह सबसे अधिक है। उत्तराखंड अपने कुल बज़ट का 75 फीसद हिस्सा तो वेतन, पेंशन, मजदूरी व ब्याज पर खर्च कर रहा है। शेष 25 प्रतिशत कैसे खर्च हो रहा है इससे हर कोई विज्ञ है।

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आये दिन मुख्यमंत्री, मंत्रियों व विभागाध्यक्षों की बैठकों के बाद छपने वाली खबरों में नित नए नए करोड़ों-अरबों के मेगा प्रोजेक्ट्स के सपने पढ़ने को मिलते हैं, ज़ाहिर है इन सपनों की बुनियाद भी कर्ज़ पर टिकी है। यदि नेताओं पर हो रहे बेतहाशा खर्चे, विधायक निधि जैसी योजनाओं, अर्थहीन विभाग व गैरजरूरी अधिकारी, कर्मचारी-शिक्षकों पर कटौती नियम लागू न हुआ तो उत्तराखंड से “उतणदण्ड” हो चुका ये सूबा दिवालिया भी हो जाये तो आश्चर्य न होगा..

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