तो जन्मकुंडली में छिपा ” जीवन ” की ” किताब ” का ” हिसाब ” | प्रस्तुति-आचार्य पंकज पैन्यूली

Share this news

CITYLIVE TODAY. MEDIA HOUSE

    आचार्य पंकज पैन्यूली (ज्योतिष एवं आध्यात्मिक गुरू)    सम्पर्क सूत्र-098183 74801, 085958 93001                                                                                                                                                                        


किस्मत, भाग्य, प्रारब्ध, तकदीर, मुकद्दर, लक और भी ना जाने क्या-क्या। ग्रह-नक्षत्र, दशा-महादशा, गौचर, वक्री, मार्गी वगैरह-वगैरह। ये ही वे शब्द जिनको शायद भी सुना होगा। ज्योतिष तो आपने सुना ही होगा। ज्योतिष ऐसा विषय है जिसकी थाह कोई नहीं ले पाया है। जिज्ञासा रहती है कि आखिर इन ग्रहों का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है या नहीं। अगर पड़ता है तो इसकी वजह क्या है और असर कैसे पड़ता है। जन्मकुंडली में जीवन का सबकुछ समाया हुआ है। इस खबर में इन्हीं अनसुलझे सवालों का जवाब देने का प्रयास करेंगे। ज्योतिष शास्त्र के जानकार आचार्य पंकज पैन्यूली की यह खास रिपोर्ट पेश है। आइये जानते हैं क्या कहते हैं आचार्य पंकज पैन्यूली।

प्रायः देखने में आता है कि कुछ लोगों को तो उनके जीवनकाल में समयानुसार अपेक्षित विषय-वस्तु,धन-धान्य की प्राप्ति हो जाती है। मगर कुछ लोगों को समान अवसर,समान परिश्रम,समान योग्यता अथवा इस सबसे अधिकता के बावजूद भी अपेक्षित विषय-वस्तु से या तो वंचित रहना पड़ता है या फिर बहुत ज्यादा संघर्ष के बावजूद भी आधी अधूरी उपलब्धि से ही संतुष्ट होना पड़ता है।

उदाहरण के तौर पर हम नौकरी/रोजगार को ले सकते हैं। अमूमन हम अपने आस-पास देखते हैं कि बहुत से लोगों को उनकी शैक्षणिक योग्यता,डिग्री,डिप्लोमा और मेहनत के अनुसार समय पर नौकरी या रोजगार नहीं मिल पाता है और यदि नौकरी/रोजगार मिल भी जाए तो कभी अधिकारी तो कभी सहकमिर्यों के कारण, कभी स्थानान्तरण तो कभी किसी अन्य समस्या के कारण तमाम तरह की उलझनों में घिरा रहना पड़ता है। वहीं बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें योग्यता और परिश्रमानुसार समय पर नौकरी/रोजगार आसानी से मिल जाता है और शांतिपूर्वक तरीके से ताउम्र नौकरी/रोजगार चलता रहता है।

ऐसा क्यों होता है ? वस्तुतः ज्योतिष शास्त्र अनुसार कुण्डली में शुभ योग हों तो जातक को संतोषजनक रोजगार,नौकरी,धन,लक्ष्मी,पद,प्रतिष्ठा आदि शुभ फल प्राप्त होते हैं, मगर कुंडली में अशुभ योग होने पर जातक रोजगार से लेकर जीवनोपयोगी विषय वस्तुओं के लिए जीवन पर्यन्त जूझने के लिए बाध्य हो जाता है। (अर्थात अच्छे योग में उत्पन्न जातक जीवन का भरपूर आनंद लेता है और अशुभ योग में उत्पन्न जातक जीवन में अनेक समस्याओं से जूझता हुआ कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत करता है)। अब विषय आता है कि कुंडली में शुभ और अशुभ योग क्यों और कैसे निर्धारित होते हैं?


इसके लिए हमें ज्योतिष के मूल सिद्धान्त को जानना होगा। दरअसल ज्योतिष जन्म,मरण और पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर आधारित है। जिसे ‘प्रारब्ध’कहते हैं। वस्तुतः प्रारब्ध से ही वर्तमान जीवन की उन्नति और अवनति सुनिश्चित होती है। अब यह भी प्रश्न आता है कि ‘प्रारब्ध’ को कैसे जाना जाए ? शास्त्रों के अनुसार ज्योतिष में वर्णित परमात्मा के दूरनियंत्रक‘नवग्रहों’ को प्रारब्ध का सूचक माना गया है। अतः जिस व्यक्ति का प्रारब्ध अच्छा होता, वह भचक्र में उपस्थित तत्कालिक ग्रहों की शुभ युति में जन्म लेता है और जिसका ‘प्रारब्ध’ संचित कर्म ठीक नहीं होते हैं वह भचक्र में उपस्थित सूर्यादि नवग्रहों की अशुभ युति में जन्म लेता है। अर्थात उपरोक्त शुभ-अशुभ ग्रह योगों के अनुपात के अनुसार जीवन में व्यक्ति को उपलब्धि हासिल होती है या फिर कठोर संघर्ष से जूझना पड़ता है।

अब प्रश्न यह भी पैदा होता है कि जब किसी जातक का ‘प्रारब्ध’ खराब है और खराब प्रारब्ध के अनुसार उसका जीवन कष्टमय व्यतीत होना सुनिश्चित है, तो ज्योतिष में वर्णित ‘प्रारब्ध’ सूचक परमात्मा के दूरनियंत्रक नवग्रहों का क्या योगदान है ? यह बात सही है कि प्रारब्ध को भुगतना ही पड़ता है, लेकिन ज्योतिष के माध्यम से खराब प्रारब्ध सूचक ग्रहों को चिन्हित कर शास्त्रानुसार उनका उचित निवारण करने पर प्रारब्ध के दुष्प्रभाव को निःसन्देह कम किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार जैसे भीषण गर्मी में हम पूरे वातावरण को तो अपने अनुकूल नहीं बना सकते हैं, लेकिन शीतकारक यंत्र-एयर कंडिशनर,कूलर,पंखे आदि का उपयोग कर गर्मी के ताप से अवश्य निजात पाई जा सकती है। दूसरी बात ‘प्रारब्ध’ अच्छा हो या बुरा यह जानना चिन्तनीय विषय हो सकता है।

लेकिन हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय यह होना चाहिए कि परमात्मा ने हमें मनुष्य योनि में दोबारा जन्म देकर वर्तमान जीवन और आगे की जीवन यात्रा को सुधारने का एक अवसर जरूर दिया है। अतः हमारा अहर्निश यह दायित्व होना चाहिए कि हम परमात्मा का आभार व्यक्त करते हुए मानवीय मूल्यों को एक उच्चस्तरीय आयाम तक पहुंचा सकें, जैसे-मन,वचन व कर्म से हिंसा नहीं करना,नीति और धर्म का अनुसरण करते हुए धन कमाना, शास्त्रानुसार आचरण करना,किसी के साथ धोखा नहीं करना, इन्द्रियों को नियंत्रण में रखना आदि। इस प्रकार सद्आचरण करने वालों का प्रारब्ध कितना भी खराब क्यों न हो, प्रारब्ध सूचक नवग्रह उन्हें पीड़ित नहीं करते हैं। यह किसी व्यक्ति विशेष या हमारे वाक्य नहीं हैं, यह वाक्य ज्योतिष शास्त्र में उल्लिखित हैं।

ad12

अहिंसकस्य दान्तस्य धर्मार्जितधनस्य च। सर्वदा नियमस्थस्य सदा सानुग्रहा ग्रहाः। वस्तुतः प्रारब्ध अथवा नवग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने के दो ही रास्ते हैं, या तो प्रारब्ध सूचक ग्रहों का समुचित निवारण समय पर किया जाए या फिर हमारा जीवन स्तर,आहार-विहार व विचार श्रेष्ठ स्तरीय हों और व्यवहार में की जाने वाली प्रत्येक क्रिया विवेक पूर्ण हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *