तीलू रौतेली एक पराक्रमी नारी | जानिये तीलू रौतेली की वीरगाथा| प्रस्तुति-सत्येंद्र चैाहान
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस|प्रस्तुति-सत्येंद्र चैाहान
तीलू रौतेली पुरस्कार के नामों की सूची जारी हो गयी है। ऐसे में यह जानना भी जरूरी है कि आखिर ये तीलू रौतेली कौन थीं जिनके नाम से राज्य सरकार पुरस्कार दे रही है। पेश है यह खास रिपोर्ट।
उत्तराखंड में सत्रहवीं शताब्दी में तीलू रौतेली नामक वीरांगना ने 15 वर्ष की आयु में दुश्मनों के साथ 7 वर्ष तक युद्धकर 13 गढ़ों पर विजय पाई थी। वह अंत में अपने प्राणों की आहुति देकर वीरगति को प्राप्त हो गई थी। 15 से 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरांगना है।
गढ़वाल क्षेत्र तीलू रौतेली की वीरगाथा के गीत व कहानियों खूब लिखी गयी हैं। तीलू रौतेली के बचपन का अधिकांश समय बीरोंखाल के कांडा मल्ला, गांव में बिताया। आज भी हर वर्ष उनके नाम का कौथिग व बॉलीबाल मैच का आयोजन कांडा मल्ला में किया जाता है।
पराक्रमी नारी तीलू रौतेली
पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कन्त्यूरों से मुक्त करवाया। उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला। फिर वह अपने सैन्य दल के साथ “सल्ड महादेव” पंहुची और उसे भी शत्रु सेना के चंगुल से मुक्त कराया। चैखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आयी। कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, सराईखेत में कन्त्यूरों को परास्त करके तीलू ने अपने पिता के बलिदान का बदला लिया। इसी जगह पर तीलू की घोड़ी “बिंदुली” भी शत्रु दल के वारों से घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई।
दुश्मन को पराजित करने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल श्रोत को देखकर उसका मन कुछ विश्राम करने को हुआ। कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उसने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी। उधर ही छुपे हुये पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कन्त्यूरी सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया। निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया गया यह वार प्राणान्तक साबित हुआ। कहा जाता है कि तीलू ने मरने से पहले अपनी कटार के वार से उस शत्रु सैनिक को मार डाला।