कोरोना का असर | बंटी का बाबाजी मिथै घोर छोड्यावा
-कोविड की दूसरी लहर में पहाड़ का रूख कर रहे हैं लोग
-कोविड की पहली लहर में भी बीरांन पहाड़ हुये थे गुलजार
-फिर से कोविड से बचने के लिये पहाड़ की लेने लगे हैं शरण
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सिटी लाइव टुडेः

कहीं बंटी का बाबाजी, तो गोलू का बाबाजी और कहीं मंगतू का बाबाजी,,, वगैरह-वगैरह,,,,,,,बस, हमें घर छोड दो। आप सोच रहे होंगे ये किसी गीत के बोल हैं क्या। तो जवाब है नहीं। ये तो कोरोनाकाल की कहानी है जो पहाड़ से शहरों व महानगरों में बसे पहाड़ियों के घरों में खूब कही और सुनी जा रही है। रोजगार या फिर शान भी कह सकते हैं के खातिर जो पहाड़ से मैदान में बसे परिवार हैं उनके यहां आजकल कुछ ऐसा ही माहौल है कि बस घर छोड दो और तुम भी चलो, क्या रखा है इन शहारों में। हालांकि इसके पीछे डर कोरोना का है।
दरअसल, कोविड ने बहुत कुछ बदल दिया है। सड़कों पर इतना सन्नाटा कोविड से पहले हमने कभी नहीं देखा। ऐसा लगता है कि मानों सारा जन-जीवन ही बदल गया हो। कोविड की पहली लहर को ही ले लीजिये। शहरों व महानगरों से लोग अपने घरों की ओर चल पड़े। बीरांन पड़े पहाड़ गुलजार हो गये। कुछेक ने ठान भी ली थी कि अब पहाड़ में ही रहेंगे। यही रोजगार करेंगे और सरकार ने स्वरोजगार के लिये योजनायें भी शुरू की। लेकिन कोविड की पहली लहर धीरे-धीरे शांत होने लगी और लोग फिर शहरों को लौटने लगे। लगा था कि अब धीरे-धीरे ही सही सबकुछ सामान्य हो जायेगा, लेकिन हुआ ठीक इसके उलट।
कोविड की दूसरी लहर आयी और देखते ही देखते भयावह रूप लेने लगी। मौजूदा हालातों से तो आप अच्छी तरह से वाकिफ हैं। अब शहरोें में बसे लोगों को पहाड़ की याद आने लगी। यहीं नहीं लोग पहाड़ भी जा रहे हैं। कहा जाये तो सीधी बात यह है कि अब कोरोना से बचने के लिये पहाड़ की ओर रूख होने लगा है। खबर है कि पिथौरागढ़ क्षेत्र में महानगरों से काल भी आ रही और लोग तीन-चार महीनों के लिये किराये पर कमरा मुहैया कराने की बात कह रहे हैंै। जहां तक नौकरी का सवाल है तो जान है तो जहान है। वैसे भी तमाम प्रतिष्ठान अपने कर्मचारियों से घर से ही काम करा रहे हैंै।
क्या कहते हैं लोग
सुनील रौथाण कहते हैं कि महानगरों मंे तेजी से कोविड फैल रहा है। हम फिलवक्त पहाड़ चले गये हैं। अमरदीप सिंह रौथाण ने अपना परिवार पहाड़ भेज दिया है। अशोक रावत, संजय रावत, जयपाल सिंह जपली आदि का भी कहना है कि पहाड़ जाने की योजना बना रहे हैं। घर के लोग भी पहाड़ जाने को तैयार है। मनीष, अशोक, अनिल भी महानगरों में रहते हैं उनका मूड भी कुछ ऐसा ही है।