Pauri News…अब नहीं होती बूंखाल की धरती बेजुवान पशुओं के ” खून से लाल ” | जगमोहन डांगी की Report
सिटी लाइव टुडे, मीडिया हाउस-उत्तराखंड
जनपद पौड़ी स्थित बूंखाल की धरती अब बेजुवान पशुओं के खून से लाल नहीं होती है। पहले यहां पशुबलि देने की परंपरा थी जो 2010 में बंद और 2011 में पूरी तरह से बंद हो गयी। प्रशासन और सामाजिक संगठनों के समवेत प्रयासों के चलते पशुबलि समाप्त हुयी। आइये, इस खबर में बूंखाल कालिंका मेले पर आधारित खबर पेश कर रहे हैं। इसमें खासतौर पर पशुबलि का ही जिक्र करते हैं। ग्रामीण पत्रकार जगमोहन डांगी ने यह खास रिपोर्ट पेश की है।
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आखरी बार 2010 में हुई थी बूंखाल कालिंका मेले में पशुबलि 2011 पूरी तरह पशु बलि बंद हो गई थी हालांकि इसमें तत्कालीन जिलाधिकारी दलीप जावलकर का अहम भूमिका रही उनके द्वारा स्थानीय लोगों के साथ निरंतर संवाद बनाया गया था और कई दिनों तक अधिकारियों का मेला क्षेत्र में डेरा डाला हुआ था अधिकारियों एवं समाजिक संगठनों ने भी क्षेत्र में जाकर अपने अपने स्तर से लोगो को बलि न देने के लिए मनाया था उसी साल प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर पशु बलि के मामले में उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका में न्यायालय ने भी धार्मिक आस्था पर होने वाली बलियों के बारे में निर्देश दिए थे। जिस कारण पशु बलि देने वाले कही लोगो पशु क्रूरता एक्ट तहत विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए थे।
पुलिस प्रशाशन से पशु क्रूरता एक्ट अधिनियम सख्ती से पालन और जिला प्रशासन और क्षेत्रीय जनता की सहभागिता से पशु बलि पूर्णतया बंद करवाने सफलता मिली थी
आखिर कार कोर्ट द्वारा की पशु क्रूरता अधिनियम का सख्ती से पालन करवाने और समाजिक संगठनों के जन जागरूकता अभियान चलाकर कर 2011 में पशु बलि पूर्णतया बंद हुई उस दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी एमसी उप्रेती और पुलिस कप्तान अनंत शंकर ताकवाले थे। इतिहास में पहली बार बिना पशु बलि का सम्पन्न हुआ था। पशु बलि रोकथाम में जन चेतना अभियान में अहम भूमिका निभा वाले विजाल संस्था की अध्यक्ष श्रीमती सरिता नेगी,समाजिक कार्यकर्ता गब्बर सिंह राणा,जय भारत सेवा समिति के अनिल स्वामी,हिंलास समाजिक संस्था के प्रभाकर बाबुलकर आदि लोगों विशेष योगदान रहा