श्री नागदेव गढ़ीः फूल चढ़ाने से छूमंतर हो जाती हैं बाधायें : अवनीश डबराल, संवाददाता

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 -पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल क्षेत्र में है प्र्रसि़द्ध श्री नागदेव गढ़ी मंदिर
-मंदिर के हवन-कुंड की बभूति से हो जाती हैं बीमारियां दूर
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देवभूमि को वेदभूमि भी कहा जाता है। यहां के कण-कण में देवत्व का वास होता हैै। मठ-मंदिरों की महिमा निराली है इनकी थाह लेना आसान नहीं हैै। आस्था और विश्वास अटूट है। ऐसी आस्था और विश्वास का मंदिर है श्री नागदेव गढ़ी मंदिर। मान्यता है कि यहां केवल फूल चढ़ाने मात्र से ही सारी विघ्न-बाधायें छूमंतर हो जाती हैंे। हवन कुंड की राख तो औषधि से भी बढ़कर जाती हैै। कहते हैं कि इस  राख को मानव और जानवर पर लगाने रोग समाप्त हो जाते हैं।


अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा मंदिर है कहां। चलिये आपको बता देते हैं कि यह मंदिर है उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की लैंसडाउन तहसील में। लैंसडाउन तहसील के तहत द्वारीखाल ब्लाक के चैलूसैंण से करीब दो किमी दूरी पर स्थित है यह श्री नागदेव गढ़ी मंदिर। बेहद खास, दिव्य भी और भव्य भी।


धार्मिक महत्व से हटकर देखें तो यहां प्रकृति के भी साक्षात दर्शन होते हैं। चैलूसैंण से दो किमी दूर पैदल मार्ग पर चलते हुये विभिन्न प्रकार के हरे-भरे पेड़ प्रकृति प्रेम का संदेश भी देते हैं। मंदिर के चारों ओर फूलों की क्यारी व फलदार वृक्ष सचमुच मन में सौम्यता और सुकून पैदा कर देते हैं।
हिमालय के भी होते हैं दर्शन मौसम अगर एकदम साफ है तो श्री नागदेव गढ़ी मंदिर से हिमालय के दर्शन भी हो जाते हैं। यहां से भैरवगढ़ी के दर्शन तो आसानी से होते हैं।
 बैकुंठ चतुर्दशी को होता है अनुष्ठान  यूं तो श्री नागदेव गढ़ी मंदिर के दर्शन को सालभर श्ऱद्धालु आते रहते हैं लेकिन बैकुंठ चतुर्दशी के दिन यहां विशेष अनुष्ठान की परंपरा चली आ रही है। हर साल बैकुंठ चतुर्दशी के दिन यहां अनुष्ठान होता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैंै। अनुष्ठान के साथ ही यहां रातभर जागण होता है और दिन में भव्य व दिव्य मेला आयोजित होता है। इसमें प्रवासी ग्रामीण भी आते हैं।


 इतिहास के आइने में इतिहास के आइने में देखें तो श्री नागदेव गढ़ी मंदिर करीब 250 साल पुराना माना जाता है। यहां की लंगूर पट्टी में जन्मे संत महाराज स्वर्गीय 1008 श्री गंगा गिरी महाराज सेना में थे। इसके बाद संत श्री गंगा गिरी महाराज तीन साल तक कठोर तपस्या की। कहते हैं कि श्री गंगा गिरी महाराज को जड़ी-बूटियों का ज्ञान था और वे जड़ी-बूटियों से लोगों का उपचार भी करते थे।
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अवनीश डबराल, संवाददाता

राकेश टम्टा ने भजन में उकेरी महिमा

राकेश टम्टा


श्री नागदेव गढ़ी की कृपा से इस क्षेत्र में एक युवा गायन के क्षेत्र में दमखम दिखा रहा है। कई गीतों को स्वर देने वाले इस युवा का नाम है राकेश टम्टा। गायिकी का हुनर तो देखते ही बनता है। हाल में ही राकेश ने श्री नागदेव गढ़ी की गरिमा व महिमा बिखेरी एक बेहतरीन भजन से। इस जागर को लोगों ने खूब पसंद किया। राकेश बताते हैं कि श्री नागदेव गढ़ी की महिमा व गरिमा का वर्णन शब्दों में करना आसान नहीं है यह तो एक ऐसा अहसास है जो मन-मंदिर में भक्ति की अखंड जोत प्रज्ज्वलित कर देता है। श्री नागदेव गढ़ी पर गाये इस भजन के बोल हैं हे बाबा, नगद्यों द्यबता, भगत श्री गंगा गिरी दैंणू ह्वैं जैं। चै दिसू मा तेरी छत्रछाया रैंदी बाबा, सुखि संति राखि बाबा।-
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बाबाजी के अनुभव से प्राप्त ज्ञान को आधार मानकर मानव कल्याण के लिये काम कर रहे हैं। श्री नागदेव गढ़ी की कृपा से इस क्षेत्र में समाज का साथ भी मिल रहा है। संत श्री गंगा गिरी महाराज जड़ी-बूटियों से लोगों का उपचार करते थे यही मानव सेवा हैै। विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक मिश्रण कर उत्तम प्रकार की चाय बनायी जा रही है। जहां तक जिक्र श्री नागदेव गढ़ी मंदिर का है तो जितना कहा जाये उतना ही कम। एक बार मंदिर के दर्शन कर लो बस समझो कि जीवन की सभी प्रकार की मनोकामनायें पूरी हो जाती हैं जय हो।


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सुनील दत्त कोठारी, संस्थापक, कोठारी पर्वतीय विकास समिति, चैलूसैंण
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 श्री नागदेव गढ़ी प्राीचन धार्मिक महत्व का मंदिर हैै। श्री नागदेव गढ़ी के प्रति असीम आस्था व विश्वास हैै। दूर-दूर से श्ऱद्धालु इसके दर्शन को आते हैं। धार्मिक महत्व के अलावा देखें तो मंदिर भी विशिष्ट हैै। जो भी माथा टेकता है उसकी झोेली भर जाती है। जीवन की सभी विघ्न-बाधायें दूर हो जाती हैं।

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पंडित प्रवीण बलूनी, कंडाखणीखाल
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